ख़ुद को पाने की ज़िद में कमबख्त खोता रहा हूँ
अक्सर आईने से "तू कौन है" यही कहता रहा हूँ
मुश्किलों को तज़ुर्बा कहते हैं
एक अरसे से कई तज़ुर्बे लेता रहा हूँ
जरूरत नहीं गलतफहमियों की मुझे
बस ख़ुद ही पर यकीं करता रहा हूँ
उसने कब की पीठ दिखा दी मुझे
लेकिन आज भी हर वक़्त उसे ही तकता रहा हूँ
सवाल ये नहीं कि अब तक क्या क्या पाया मैंने
पाने के साथ साथ बहुत कुछ खोता रहा हूँ
थमना नहीं अब बीच राह में मुझे
बस इन्हीं इरादों से चलता रहा हूँ
-प्रशान्त सेठिया
Suprb meaningful inspiration writing
ReplyDeleteThank you 😊🙏
DeleteNice one.. self introspection
ReplyDeleteThank you 😊🙏
DeleteVery nice
ReplyDeleteThank you 😊🙏
DeleteSuperb 👍👍
ReplyDeleteThank you 😊🙏
DeleteVery nice,keep it up bro
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