सुकून

सवाल अनगिनत हैं दफ़न दिल में
जवाब कुछ के भी मिले तो सुकून आए

रजा तो उन दोनों की रही है इक अरसे से
मिलन अब हासिल हो तो सुकून आए

पाई पाई जोड़ के पावों पे खड़ा किया इन्हें
शोहरत बच्चों के सर ना चढ़े तो सुकून आए

बहुत अरमानों से विदा हुई है लाडो पलकें नम किए
अब मुस्कान उसकी सदा बनी रहे तो सुकून आए

कर्जा लेकर आज ही बीज लाये हैं
अब बिन कर्ज की खुशियाँ मनाए तो सुकून आए

नहीं मिलता सब चाहत के हिसाब से हमें
बस इतनी सी बात समझ आए तो सुकून आए

-प्रशान्त सेठिया



ख़ुद को पाने की ज़िद

ख़ुद को पाने की ज़िद में कमबख्त खोता रहा हूँ
अक्सर आईने से "तू कौन है" यही कहता रहा हूँ

मुश्किलों को तज़ुर्बा कहते हैं
एक अरसे से कई तज़ुर्बे लेता रहा हूँ

जरूरत नहीं गलतफहमियों की मुझे
बस ख़ुद ही पर यकीं करता रहा हूँ

उसने कब की पीठ दिखा दी मुझे
लेकिन आज भी हर वक़्त उसे ही तकता रहा हूँ

सवाल ये नहीं कि अब तक क्या क्या पाया मैंने
पाने के साथ साथ बहुत कुछ खोता रहा हूँ

थमना नहीं अब बीच राह में मुझे
बस इन्हीं इरादों से चलता रहा हूँ

-प्रशान्त सेठिया