ज़िंदगी तेरे सारे दस्तूर

ज़िंदगी तेरे सारे दस्तूर किये जा रहे हैं
बगैर अपनी सोचे, बदस्तूर किये जा रहे हैं
जता नहीं, सिर्फ बता रहें हैं
सपनों को हर वक़्त चकनाचूर किये जा रहे हैं

देखते हैं जब नहीं होता अपना चाहा हुआ
दो पल की थोड़ी उदासी छा जाती है
ज्यादा और कुछ नहीं सोचता 
बस फिर से जिम्मेदारियों की समझ आ जाती है
ज़िंदगी तू मेरी भी तो है ना!
या तुम्हें हम ऐसे ही जिये जा रहे हैं

ज़िंदगी, कभी चंद लम्हें निकाल तू हमारे लिए
समझ कि ये नाचीज़ चाहता क्या है
जरा सा ग़म कभी कभार ठीक है
जरा हमें ये भी तो बता कि खुशियाँ क्या है
हमें ख़ुद से करा दे परिचय आज
हम ख़ुद को दुनिया से रूबरू किये जा रहे हैं

-प्रशांत सेठिया




झाँकियाँ यादों की निकालता होगा

झाँकियाँ यादों की निकालता होगा
कहानियाँ किस्से तो बतलाता होगा

उसके बिन जी ना सकूँगा, अक्सर वो कहता था
साँसों के धागे शायद यादों से निकालता होगा!

टकटकी लगाए इंतजार में चौखट पर बैठा हुआ
शायद आँखों में समन्दर उतारता होगा

दिन का गुज़रना इतना मुश्किल नहीं होता
रातें न जाने वो कैसे गुजारता होगा

उससे मिलने का ठिकाना अब भी वही है
बस बाट उसकी हरदम निहारता होगा

-प्रशांत सेठिया