छू कर मेरे दिल को

छू कर मेरे दिल को तू यूँ न जा
तू ही मेरे जीने का बस इक जरिया

आ लौट आ तू कहाँ जा रहा
ऐसे न मुझको अब तू रुला

कोई ख़्वाहिशें न रहेगी मुझमें जवां
जब तू न रहेगा मेरे पास हमनवां

हां तू जब से चला ही गया
गुनगुनाने का अब कोई मकसद ना रहा

गुमसुम सा तब से मैं बैठा हुआ
तेरी यादों में जब जब मैं खोता रहा

मुस्कुराने का न अब कोई कारण बचा
तेरा जब से जाना हुआ

छू कर मेरे दिल को तू यूँ न जा
तू ही मेरे जीने का बस इक जरिया

-प्रशांत सेठिया



रंग

चेहरे के रंग तुम भले बदलना
मन के रंग तुम नहीं बदलना

जो रंग सारे रंग छुपादे
उन रंगों से दूर ही रहना

चाहे जो तुम रंग लगाना
अपने रंग को भूल न जाना

जो रंग तुमको नहीं सुहाता
पीछा उससे जल्द छुड़ाना

चढ़े भाव का कोई भी रंग
प्यार के रंग में सदा ही रहना

-प्रशांत सेठिया


पता तो है ना!

राहों में कईँ मोड़ मिलेंगे
तुम्हे कहाँ मुड़ना है 
पता तो है ना!

एक ही पल में बहुत सारे भाव आयेंगे 
किसके सामने क्या जाहिर करना है
पता तो है ना!

सुनते रहना अच्छी बात है
लेकिन जवाब कब देना है
पता तो है ना!

कोई नहीं रोकेगा तुम कुछ भी करना
लेकिन तुम्हारा भला किसमे है
पता तो है ना!

सब तरह की संगत मिलेंगी हर कदम पर
तुम्हे कौनसी चुननी है
पता तो है ना!

विजयपथ में रहेंगी लाख दिक्कतें 
तुम्हे बस चलते और चलते जाना है
पता तो है ना!

-प्रशान्त सेठिया



सुकून

सवाल अनगिनत हैं दफ़न दिल में
जवाब कुछ के भी मिले तो सुकून आए

रजा तो उन दोनों की रही है इक अरसे से
मिलन अब हासिल हो तो सुकून आए

पाई पाई जोड़ के पावों पे खड़ा किया इन्हें
शोहरत बच्चों के सर ना चढ़े तो सुकून आए

बहुत अरमानों से विदा हुई है लाडो पलकें नम किए
अब मुस्कान उसकी सदा बनी रहे तो सुकून आए

कर्जा लेकर आज ही बीज लाये हैं
अब बिन कर्ज की खुशियाँ मनाए तो सुकून आए

नहीं मिलता सब चाहत के हिसाब से हमें
बस इतनी सी बात समझ आए तो सुकून आए

-प्रशान्त सेठिया



ख़ुद को पाने की ज़िद

ख़ुद को पाने की ज़िद में कमबख्त खोता रहा हूँ
अक्सर आईने से "तू कौन है" यही कहता रहा हूँ

मुश्किलों को तज़ुर्बा कहते हैं
एक अरसे से कई तज़ुर्बे लेता रहा हूँ

जरूरत नहीं गलतफहमियों की मुझे
बस ख़ुद ही पर यकीं करता रहा हूँ

उसने कब की पीठ दिखा दी मुझे
लेकिन आज भी हर वक़्त उसे ही तकता रहा हूँ

सवाल ये नहीं कि अब तक क्या क्या पाया मैंने
पाने के साथ साथ बहुत कुछ खोता रहा हूँ

थमना नहीं अब बीच राह में मुझे
बस इन्हीं इरादों से चलता रहा हूँ

-प्रशान्त सेठिया



ज़िंदगी तेरे सारे दस्तूर

ज़िंदगी तेरे सारे दस्तूर किये जा रहे हैं
बगैर अपनी सोचे, बदस्तूर किये जा रहे हैं
जता नहीं, सिर्फ बता रहें हैं
सपनों को हर वक़्त चकनाचूर किये जा रहे हैं

देखते हैं जब नहीं होता अपना चाहा हुआ
दो पल की थोड़ी उदासी छा जाती है
ज्यादा और कुछ नहीं सोचता 
बस फिर से जिम्मेदारियों की समझ आ जाती है
ज़िंदगी तू मेरी भी तो है ना!
या तुम्हें हम ऐसे ही जिये जा रहे हैं

ज़िंदगी, कभी चंद लम्हें निकाल तू हमारे लिए
समझ कि ये नाचीज़ चाहता क्या है
जरा सा ग़म कभी कभार ठीक है
जरा हमें ये भी तो बता कि खुशियाँ क्या है
हमें ख़ुद से करा दे परिचय आज
हम ख़ुद को दुनिया से रूबरू किये जा रहे हैं

-प्रशांत सेठिया




झाँकियाँ यादों की निकालता होगा

झाँकियाँ यादों की निकालता होगा
कहानियाँ किस्से तो बतलाता होगा

उसके बिन जी ना सकूँगा, अक्सर वो कहता था
साँसों के धागे शायद यादों से निकालता होगा!

टकटकी लगाए इंतजार में चौखट पर बैठा हुआ
शायद आँखों में समन्दर उतारता होगा

दिन का गुज़रना इतना मुश्किल नहीं होता
रातें न जाने वो कैसे गुजारता होगा

उससे मिलने का ठिकाना अब भी वही है
बस बाट उसकी हरदम निहारता होगा

-प्रशांत सेठिया