इक अंधेरी रात में चाँद दिखा मुझे
आँखें बंद थी मेरी, फिर भी दिखा मुझे
जाते जाते कह गया, फिर ना कभी मिलूँगा
फिर भी मेरे सामने, क्या कहने दिखा मुझे
तेरे फसाने जहन में, हवा तक को न एहसास होगा
तू जैसे लौट आ गया, तूफ़ां सा दिखा मुझे
मैं सो रहा था चैन से, जैसे सुबह ही उठूँगा
प्रहर रात का और सुबह मेरी हुई, जब से दिखा मुझे
मेरी बस इक नींद का, बैरी तू मुझको लगा
जब जब बुलाई नींद को, तब तब दिखा मुझे
-प्रशान्त सेठिया