कुछ छुपा ना पाओगे तुम माँ से

चाहे दामन भरा हो मुसीबतों से
वो फिर भी सबके आँसू पौंछे
कितना भी झूठा हँस लो
कुछ छुपा ना पाओगे तुम माँ से

वो क्या क्या नहीं है करती
हम सोच ना सके सपनों में
रहे खड़ी सामने दुर्गा सी
ताकि हँसते रहें हम कष्टों में

करो आदर इस मूरत का
वरना याद करोगे रो के
जानों ख़ुद को किस्मत वाला
जो पड़ पाती आवाजें माँ की कानों में

माना तुम घिरे हुवे सौ दुःखों से
मन व्यथित हमेशा रहता
लेकिन गुस्सा सारा क्यूँ माँ पर
कभी झाँक तू ख़ुद के करमों में

-प्रशांत सेठिया

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