मन नहीं करता

बिन कुछ किए, दिन-ब-दिन आलसी लगे समां
और बोले अगर कोई नहाने को तो
मन नहीं करता

आलम फिर भी खुशमिजाज है यहाँ
और कहते है कि कहीं भी जाने को
मन नहीं करता

तू ही मेरा जहां, तुम बिन न कोई कारवां
और बगैर तेरे कुछ भी करने को
मन नहीं करता

रात आधी जहाँ, सोने का उत्तम समां
और तेरे बाँह के तकिये बिना सोने को
मन नहीं करता

सुबह हो गई, पर तू है नहीं यहाँ
और तेरे बिन चाय पीने को
मन नहीं करता

बेशक जिंदा हूँ, धड़कने काम कर रही है अपना
और तुम बिन यूँ ही हर रोज जीने को
मन नहीं करता

जाने में तो चला जाऊं, जिधर भी बोला जाए वहाँ
लेकिन बगैर इज्जत के किधर भी जाने को
मन नहीं करता

चलो मान भी लूँ जो भी तू बोले गर हो वो सपना
लेकिन हकीकत में ऐसा कुछ भी मानने को
मन नहीं करता

-प्रशान्त सेठिया



2 comments: