मैं ख़ुद से न कभी लड़ा था

बड़ी ऊँचाइयों से गिरा था
बेसुध, चोटिल सा पड़ा था
अपनों से हर बार लड़ा था
मैं ख़ुद से न कभी लड़ा था

दोष मेरे भी अनगिनत थे
एक से एक क्रमोन्नत थे
लेकिन मैं अहम से सना था
मैं ख़ुद से न कभी लड़ा था

खामियां औरो में ही देखता
हर काम मे नुक्स टटोलता
खुद का निरीक्षण जैसे गुनाह था
मैं ख़ुद से न कभी लड़ा था

किसी का भी मजाक बनाना
हालातों को गौण ठहराना
मीठा नहीं हर बोल कड़ा था
मैं ख़ुद से न कभी लड़ा था

बड़ी बड़ी डींगे हांकना
बिन कुछ किये सारा समय काटना
ढीठ सा रहा, न कभी शर्मिन्दा था
मैं ख़ुद से न कभी लड़ा था

किसी की भी बातों में आना
अपना दिमाग ना लगाना
दूषित विचारों का भंडार भरा था
मैं ख़ुद से न कभी लड़ा था

असुरक्षा से हमेशा घिरा था
सुरक्षा के लिये कुछ न किया था
मित्र नहीं, शत्रुओं में इजाफा बड़ा था
मैं ख़ुद से न कभी लड़ा था

विलम्ब हुई, लेकिन बहुत पछताया
बुढापा अब, न कोई सहारा
व्यवहारिक नहीं, खड़ूस बड़ा था
मैं ख़ुद से न कभी लड़ा था

बिन आदर, आदर कैसे मिलेगा
बिन प्रेम, प्रेम कैसे मिलेगा
जैसा बोओगे, मिलेगा वही पता था
मैं ख़ुद से न कभी लड़ा था

सामना स्वयं से करना था
ख़ुद से हर बार भिड़ना था, 
जो औरों से जा भिड़ा था
मैं ख़ुद से न कभी लड़ा था

-प्रशान्त सेठिया





कुछ छुपा ना पाओगे तुम माँ से

चाहे दामन भरा हो मुसीबतों से
वो फिर भी सबके आँसू पौंछे
कितना भी झूठा हँस लो
कुछ छुपा ना पाओगे तुम माँ से

वो क्या क्या नहीं है करती
हम सोच ना सके सपनों में
रहे खड़ी सामने दुर्गा सी
ताकि हँसते रहें हम कष्टों में

करो आदर इस मूरत का
वरना याद करोगे रो के
जानों ख़ुद को किस्मत वाला
जो पड़ पाती आवाजें माँ की कानों में

माना तुम घिरे हुवे सौ दुःखों से
मन व्यथित हमेशा रहता
लेकिन गुस्सा सारा क्यूँ माँ पर
कभी झाँक तू ख़ुद के करमों में

-प्रशांत सेठिया

आज एक और पड़ाव पूरा होने को है

आज एक और पड़ाव पूरा होने को है
भ्रमण एक और जंगल का पूरा होने को है

जंगल में भी भावनाएं शायद काम कर जाए
अपेक्षाएं लेकिन इधर बहुत घनघोर होने को है

कर्मचारी तू उठ और लग जा काम पूरा करने में
वरना बातों ही बातों में बड़ा शोर होने को है

क्या करेगा रात में सोके, थोड़ा माथा और खपा
माँ बोले थोड़ा सोजा, देख बाहर भोर होने को है

जीने के लिए काम है या काम के लिए जीना
बस साल के अंत मे इसी पर गौर होने को है

तेरा बोला शायद सही भी हो लेकिन
साहब ने जो बोल दिया वही तौर होने को है

ठीक है साहब लोगों का ध्यान देना लेकिन
ज्यादा ध्यान दिया तो वो ignore ही होने को है

-प्रशान्त सेठिया

आज एक और पड़ाव पूरा होने को है


मंगल पर मंगल

मंगल पर मंगल ढूंढ़ने वालों
जरा मंगल यहाँ तो करलो

जिस धरती पर जन्मे हो
उसका फ़र्ज़ अदा तो करलो

सबके मंगल का सोचलो
अमंगल सबका मिटालो

भगवान भी बैठा सोचे
क्या करे मनुष यहाँ आके

जिसका हृदय बना था मुलायम
क्यों बदला अब उसका रसायन

जिसको है घड़ा मैंने उत्तम
वो ही खो रहा नियंत्रण

सबका मंगल कैसे हो पाए
क्यूँ ना चित्त अब इसमें लगाए

प्रयत्न क्यूँ व्यर्थ तुम करते
क्या करोगे उधर पहुँच के

क्या जगह इधर अभी कम है
जो जाकर उधर धमाके करने

पहले जीना इधर तो सीखो
फिर ज्ञान उधर का लिखो

कहाँ तक विस्तार करोगे
दो हाथ से कितना भरोगे

पहले अंतरमन की तो सुनलो
वरना ख़ाक है कुछ भी करलो

-प्रशांत सेठिया



मन नहीं करता

बिन कुछ किए, दिन-ब-दिन आलसी लगे समां
और बोले अगर कोई नहाने को तो
मन नहीं करता

आलम फिर भी खुशमिजाज है यहाँ
और कहते है कि कहीं भी जाने को
मन नहीं करता

तू ही मेरा जहां, तुम बिन न कोई कारवां
और बगैर तेरे कुछ भी करने को
मन नहीं करता

रात आधी जहाँ, सोने का उत्तम समां
और तेरे बाँह के तकिये बिना सोने को
मन नहीं करता

सुबह हो गई, पर तू है नहीं यहाँ
और तेरे बिन चाय पीने को
मन नहीं करता

बेशक जिंदा हूँ, धड़कने काम कर रही है अपना
और तुम बिन यूँ ही हर रोज जीने को
मन नहीं करता

जाने में तो चला जाऊं, जिधर भी बोला जाए वहाँ
लेकिन बगैर इज्जत के किधर भी जाने को
मन नहीं करता

चलो मान भी लूँ जो भी तू बोले गर हो वो सपना
लेकिन हकीकत में ऐसा कुछ भी मानने को
मन नहीं करता

-प्रशान्त सेठिया



बता देना

शरारत, इशारे, मिलने के इरादे
याद याद और बस तेरी ही यादें
वैसे याद तो हमेशा करते हो तुम हमे
मिले कभी फुरसत तो जता देना

मौसम वो सारे जो तेरे संग गुजारे
वो झिलमिल सितारे, गवाह है हमारे
कुछ कुछ क्या सबकुछ जहन में है
तुम्हे कोई पल खास याद हो तो बता देना

वक्त, जगह, पोशाक और अवधि
किस मुलाकात पर क्या बात हुई
तुझ संग बीते हर एक पल का ब्यौरा है
तुम्हें कुछ याद न आये तो बता देना

अकेला खुश रहना मुकद्दर हमारा
ये इरादा भी था तुम्हारा
नहीं करता कोशिशें अब तुमसे मिलने की
गर तुम वही मुलाकातें चाहो तो बता देना

अब तो मैं भी तुझसा हो गया
कोई भी वादा मैं निभा न पाया
तुमने जब से अपना वादा तोड़ा है
मैंने कोई निभाया हो तो बता देना

-प्रशान्त सेठिया