कहीं धूमिल ना हो जाना सपने मेरे
कहीं मुझसे दूर ना जाना ओ अपने मेरे
तू नहीं तो क्या मंज़िलें और क्या कारवां
चल रहा हूँ क्योंकि चलने लायक है बस पाँव मेरे
जमाने के पैमाने नाजायज़ से लगे
जरूरी तो बस तेरा होना लगा बाहों में मेरे
तू जाती नहीं और दोष मुझ पर सदा
सुबह शाम आधी रात है सामने तू आँखों के मेरे
नहीं है रति भर भी शिकायत तुझसे
जो भी रहा गिला वो ख़ुद से मेरे
बहुत बारी सोचा है ख़ुद को धूमिल कर दूँ
लेकिन जिम्मेदारी की गठरी है माथे पर मेरे
कहीं धूमिल ना हो जाना सपने मेरे
कहीं मुझसे दूर ना जाना ओ अपने मेरे
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