लगन तुझसे ये कैसी लगी
चाहने से ना मिट पाए
तुमसे मिलने को बेबस ये मन
ना जाने कैसी लगी ये लगन
ढूँढता है तुझे हर क्षण
हर पल अब मेरा ये चलन
तुमसे कैसे मिलूँ ओ सखा
मेरा हर कण करे ये यतन
तुमसे मिलने को बेबस ये मन
ना जाने कैसी लगी ये लगन
तेरे लब और झुके दो नयन
इतना काफी तेरा ये जतन
कैसे भूलूँ तुझे ओ सखा
याद में ही रहूँ मैं मगन
तुमसे मिलने को बेबस ये मन
ना जाने कैसी लगी ये लगन
है कस्तूरी तू मैं हूँ हिरन
मन चंचल में फैला भरम
तू मुझमे निहित ओ सखा
फिर भी ढूंढ़े जमीं और गगन
तुमसे मिलने को बेबस ये मन
ना जाने कैसी लगी ये लगन
Well written 👌👌
ReplyDeleteThank you😊🙏
DeleteVerry nice...
ReplyDeleteThank you😊🙏
DeleteNice one
ReplyDeleteThank you🙏😊
DeleteNice🥰
ReplyDeleteThank you🙏😊
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