ये निगाहें, जैसे सब कुछ कहे
न है जुबान इसकी
न है आवाज़ इसकी
भावना की धारा फिर भी निरंतर बहे
ये निगाहें, जैसे सब कुछ कहे
न है जुबान इसकी
न है आवाज़ इसकी
भावना की धारा फिर भी निरंतर बहे
ये निगाहें, जैसे सब कुछ कहे
बोली को अक्सर कोई
अनसुना करे
शैली को अक्सर कोई
अनदेखा करे
लेकिन इनसे तो बचना जैसे मुश्किल रहे
ये निगाहें, जैसे सब कुछ कहे
मन मे है क्या
वो भी इनसे दिखे
जो दिल मे नहीं
वो भी इनसे दिखे
सच के अलावा इनमे कुछ न बसे
ये निगाहें, जैसे सब कुछ कहे
जिनसे से है प्रीत
उनसे ये ना हटे
जो भी है उतरा मन से
उन पर ये ना टिके
आँखों की भाषा कोई मुश्किल से पढ़े
ये निगाहें, जैसे सब कुछ कहे
Nice one,keep it up
ReplyDeleteThank you😊🙏
DeleteNice keep writing 😘
ReplyDeleteThank you😊🙏
DeleteThank you😊🙏
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