दो पत्ते

यह वही दो पत्ते हैं
जो धरा चीर निकले हैं
जो बड़े शरमाये से हैं
जो धरा पर बिल्कुल नये हैं
थोड़े वक्त अकेले रहना
सर्दी गर्मी सब अकेले सहना
दुआ है यह जल्द बढ़ेंगे
एक पौधे का रूप ये लेंगे
धरती पर क्यूँ आया है
उन्होंने ध्येय पाया है
रख ध्यान तू इसका बंदे
कर पालन तू इसका बंदे
यह तुझसे कुछ न लेंगे
पर आजीवन सब कुछ देंगे
यह सच्चा प्रेम निभाने
इंसान को यह बतलाने
कि देना सबकुछ औरों को
देना तुम कभी न रोको
जो देता है वो याद रहेगा
सच्चा प्रेम इन्ही से मिलेगा

मोहल्ले की मस्ती

होली की रंगत
दोस्तो की संगत
दीवाली की खुशियाँ
दोस्तों संग तरियाँ
मेलों में मस्ती
लड़कपन की कश्ती
साइकिल पर कटता रास्ता
सुबह ढाबे पर कांदे भुजियों का नाश्ता
गर्मियों की छुट्टियाँ
खुले छ्त पे कटती रतियाँ
मोहल्ले का एक कमरा खास
जमघट दिनभर वही, सारे खेले ताश
बजती सिर्फ स्कूलों में घंटी
थी न कोई मोबाइल की घंटी
सबका एक साथ खाना और फिर
मोहल्ले भर से सबका पान की दुकान पर आना
फ़िजूल के गप्पों की बरसात
बस ऐसे ही शुरू होती सबकी रात
शादी में कैटर्स का न होना
सबको मिलकर बादाम छिलना
क्लब से बर्तनों को गिन के लाना
पतंगों की ऋतु में मांजा सुलझाना
सिर्फ ढाबे में खाने के लिए दिन भर लटाई पकड़ना
एक गेंद के लिए सबसे एक एक रुपया लेना
मोहल्ले भर का एक साथ नया साल मनाना
उसकी तैयारी में एक हफ्ते पहले ही लग जाना
हर खाली जगह पर क्रिकेट के डंडे गाड़ना
उधर गाली मिले तो दूसरी जगह पर जाना
अब सब समझदार हो चुके, कोई फ़िजूल के गप्पे जो नहीं करते
अब सब पैसेवाले हो चुके, सब जन दस दस गेंदें ला सकते
अब सब रईस हो चुके, होटल रिसोर्ट बिन मस्ती नहीं करते
शहर नहीं गाँव भी बदलने लग गए
बिन पैसे के मस्ती के वो दिन भी लद गए