तो सही

तुझे सोचना भी बंद कर दूँ
लेकिन तेरी यादें जहन से जाए तो सही
मैं ताउम्र तेरे इंतज़ार में गुज़ार दूँ
लेकिन तू एक वादा कर जाए तो सही
मैं सारे रिश्ते बखूबी निभा भी दूँ
लेकिन कोई अपना हाथ बढ़ाए तो सही
मैं सारे गिले शिकवे भुला भी दूँ
लेकिन कोई अपनी गलती माने तो सही
मैं तारे तोड़ ला भी दूँ
लेकिन चाँद खुद से घर आये तो सही
मैं ख़ुद को तुझ पर लुटा भी दूँ
लेकिन वह भरोसा कोई दिलाए तो सही
मैं सिसकना बंद कर भी दूँ
लेकिन कोई वह एक वजह बताए तो सही
मैं कभी उठूँ भी न नींद से
कोई फिर से वही गोद बतलाए तो सही
मैं रूठना बंद कर भी दूँ
बस कोई एक बार दिल से मनाए तो सही

मुझे गैरज़रूरी लगा

 उनका बेमतलब का रूठना
और मनाना उन्हें हर छोटी बात पर
मुझे गैरज़रूरी लगा

उन्हें भी रिश्तों की क़दर हो, बेहतर होगा
और सिर्फ अपना आत्मसम्मान खोना
मुझे गैरज़रूरी लगा

मैं भी जी हुजूरी कर सकता था
लेकिन सिर्फ ऊँचाई के लिए गिरना
मुझे गैरज़रूरी लगा

घर में शेर और बाहर निकले दुम हिलाते
और हर काम के लिए अलग मुखोटा
मुझे गैरज़रूरी लगा

चिंतन करो, तुम ख़ुद को टटोलो
लेकिन हर बात का दोष दूसरे पे मंढ़ना
मुझे गैरज़रूरी लगा

भीतर कुटिलता लबों पर हँसी
और ऐसे कोई काम निकलवाना
मुझे गैरज़रूरी लगा

जैसा है वैसा ही रहना "राजा"
किसी भी बात के लिए बदलना
मुझे गैरज़रूरी लगा

पत्थर

हाँ मैं तो पत्थर ही हूँ
कुछ नही बोल पाऊँगा
बर्ताव भले कैसा भी हो
सहनशील हूँ सहता चला जाऊँगा
चोट भले ही करना मुझ पर
संभल के रहना लेकिन
हवा में उड़ता मेरा टुकड़ा कभी भी
आँख में घुसने से पहले
तनिक विचार भी नहीं करेगा
और मैं रोक भी नहीं पाऊँगा
हर मौसम ओ मुश्किल में कहीं नहीं जाऊँगा
इंसान तेरे जैसे में कभी पीठ नहीं दिखाऊँगा
तू तराश ले मुझे और
मंदिर में रख भले
बिछड़े टुकड़ों को भला
मैं कैसे भूल पाऊँगा
टुकड़े जब मेरे 
राहों में बिखरे होंगे
राहगीर के पाँव से
कुचलता उन्हें कैसे देख पाऊँगा
माना मेरी क्षमता है
भार सहना लेकिन
कमजोर निर्माण का दोष
मैं कैसे सह पाऊँगा
हाँ हूँ तो पत्थर ही
कुछ बोल नहीं पाऊँगा

मैं और साकी

है कौनसा जाम अब बाकी
इतना तो बता मेरे साकी
इनसे तो लगी नहीं झपकी
अभी तो रात बहुत है बाकी
क्या है पास तेरे ओ साकी
उसकी यादें हो फीकी ताकि
यादों से जितना मैं भागूँ
सारी कोशिश हो जाये हल्की
सो पाऊँ चैन की निंदिया
बस इतनी आस है बाकी
हुआ सोना मेरा ओ साकी
जैसे लगे यादों की झाँकी
नींदों में जाने मैं क्या क्या
बकने हूँ लगा बेबाकी
कबसे ना जाने मुझे साकी
अच्छी लगने लगी एकांकी
खिलखिलाते जीवन को मेरे
न जाने नज़र लग गई किसकी
है कौनसा जाम अब बाकी
इतना तो बता मेरे साकी

-प्रशान्त सेठिया