सपना

उसके संग रहना
दिन भर बातें करना
हर पल की मस्ती
अब आँख तरसती
कब मिलूँ में तुझसे
रहूँ मैं पहले जैसे
तेरा ख़याल न जाये
वैसे ही नींद आ जाये
तेरा लौट के आना
मुझे गले लगाना
माथा सहलाना
मेरे गाल खीँचना
फिर जी भर की बातें
और टपरी पे जाना
दो कस साथ लगाना
फिर साथ में चाय की चुस्की
अचानक आई खाँसी
मेरी नींद का खुलना
सपने से बाहर आना
जो चला गया उसका 
कैसे लौट के आना
फिर पलकें गीली
दो पल ही सही
इक दफ़ा फिर से मैंने
वही ज़िंदगी जीली

जवानी

तेरी आवाज़ में दम होगा
चक्षु में तेज़ ना कम होगा
सुनेगा दो कोस से तू
थकेगा दिन भर भी ना तू
बदन पर धारा श्रमजल की और 
और गुस्से से फुले धमनी
उम्र का काल ये श्रेष्ठ जानी
इस काल का नाम जवानी

जिम्मेदारी की गठरी लादी
सब गौण इच्छा इत्यादि
मन मे जोश लिए तूफानी
इस काल का नाम जवानी

तू संगत रख मतवाली
जो मन में ठानी कर डाली
जब राजा को मिल जाये रानी
इस काल का नाम जवानी

ये प्रहर जीव का जीवनदायी
बचपन की झलक जो पाई
तेरे तेज़ का ना कोई सानी
इस काल का नाम जवानी

इसी उम्र के चलते भागे
जो ना भागे बड़े अभागे
जो बहके वो करे शैतानी
इस काल का नाम जवानी

सब सपने पूरे करने का
सब संकट को दूर करने का
यह पड़ाव मात्र सुल्तानी
इस काल का नाम जवानी

मत गवां नशे में इसको
मत लूटा व्यर्थ में इसको
फिर ये उम्र न वापस आनी
इस काल का नाम जवानी

माँ बाप की सेवा करना
किसी के दुःखों को कम करना
बस पुण्याई इसमें कमानी
इस काल का नाम जवानी

मेरा जूता

मेरा जूता
कब से है अछूता
लाया था काला
अब लगता है भूरा
बारिशों में 
सिकुड़ा थोड़ा
कसियाँ उसकी
जैसे कलफ़ लगाया
अलमारी से बाहर निकालो
बार बार आवाज़ लगाता
उसको ख़बर क्या
बाहर मंजर क्या छाया
पता नही कब दफ्तर खुलेगा
जब अलमारी से ये बाहर निकलेगा

संभलो यारों

आँसू पोंछो और खुद को संवारों
जाने वाले को जाने दो यारों

तेरी जिम्मेदारी और भी है दुनिया में
हँस के उसी में लग जाओ यारों

किसी के जाने से ज़िन्दगी नहीं थमती
मन को अब तो काबू में करलो यारों

समय सब घाव भर देगा
कोई उससे भी अच्छा आयेगा यारों

तेरा जुड़ाव गलत नहीं है उससे
पर खुद्दारी खुद की भी तो समझो यारों

अकेलापन

अकेले बिताऊँ मैं पहर दर पहर
छत पे बैठूँ और देखूँ ये सारा शहर
अपने अंदर को टटोलूँ है कहाँ पे ज़हर
क्यूँ अनुभव करता हूँ अकेलापन अक्सर

सुन्दर है शहर फिर क्या है कसर
जगमग है रातें फिर दिल क्यूँ है बंजर
कुछ तो छुपा है जो न आता नजर
कैसे बनाऊँ अपने इस मन को अविरल

जो न अच्छा लगे तो क्यूँ बैचेनी का बवंडर
क्यों इतना मन मे फैला विचारों का अंतर
क्यूँ दिल से जाता नहीं इक अनजाना सा डर
कैसे समभाव से हो मेरा गुजर बसर

क्यूँ ना घुल पाता सबसे, 
कैसे हो जाऊँ सबसे मुखर
उधड़े हुए दिल की में कैसे लूँ खबर
कैसे पेश आऊँ बनके सबसे मधुर
कुछ समझ नही आता
कि कब तक रहेगा ऐसा ही मंजर

ले संज्ञान

गूँजने दे चीख़ें
हम सब बहरे हैं
हमें क्या पता कौन है
थोड़ी न हमारी बहने है
दो दिन ख़बर में रहेगी
चर्चे थोड़ी न हर सवेरे में है
ऐसा सोचने वालों
थोड़ा दिमाग पर जोर डालो
मत बनो अनजान
कुछ तो लो संज्ञान
कब तक चुप रहोगे
औरतें तो तुम्हारे घर में भी है
माना तुमने कुछ भी न किया
फिर भी गर चुप रहे तो 
जुर्म का खुद को हिस्सेदार बना लिया

हामी

किवाड़ लगा जाके दिवार पे
वो सीधा घर में घुस आया
पूरा कुटुम्ब विस्मय में था
देखे ये फिर क्या करने आया
मन मेरा बहुत ही विचलित था
न जाने ये अब क्या कर देगा
मेरे ही प्यार में पागल वो
सचमुच आशिक़ दीवाना था
उसने पापा को देख मेरे
कर जोड़ बैठा वो घुटनों पे
और बोल पड़ा हाँ करदो पापा
मैं खुश रखूँगा आपकी बिटिया को
पापा ने अपना मुँह फेर लिया
और लगे देखने मेरे को
मै भी नज़र झुका कर बोली
मैं भी चाहूँ दिल से इसको
हामी अगर मिले आपकी हमको
हम जीवन भर ऋणी रहें दोनों
क्या कुछ नहीं किया आपने अब तक
बस अंतिम इच्छा पूरी कर दो
पापा अब तक जो शांत खड़े
उसको भी गले लगाया था
और बोले तुम दोनों खुशियाँ बाँटो
कोई तकलीफ़ हो तो बता देना
सुनो ओ छोटी की अम्मा
जरा पंडित को घर पे बुला लेना
मुहूर्त दिखवाओ शादी का
छोटी को विदा है अब करना
इतना सुन के मैं दौड़ पड़ी
पापा से लिपट के रोने लगी
आपकी एक "हामी" ने मेरी
जीवन भर की खुशियाँ लिख डाली