बसंत आ गया नये पत्ते भी
टहनी पर नन्हे फूलों ने दस्तक दी
मधुमक्खी के दिन भी आ गए
सुगंधों के कण न्यौता दे आये
आकर इतराती करतब दिखलाती
फूलों पे बैठ बस आनंद पाती
फूलों से सारे फल भी बन गए
टहनी छोटी और फल भी लद गए
टहनी छोटी और भार बड़ा
उसके समक्ष संकट है खड़ा
झुक के कितना वो झुकती
मुड़ के कितना वो मुड़ती
टूटी वो हवा के थपेड़ों से
और जुदा हुई अपने पेड़ों से
गिर के बिखरे उसके सब सपने
फल पके नहीं उसके सारे अपने
टहनी ने सोचा कभी ना ऐसा
कि गिरने का कारण क्या होगा ऐसा
फल तो मेरा ही अंश था
कैसे उन्ही से अंत हो गया
फल ही थे मेरी असली कमाई
उनका भार भी मैं सह नहीं पाई
जिस पेड़ का वो थी हिस्सा
कैसे बन गई अब किस्सा
क्या हुई टहनी से गलती
कहाँ खो गई मजबूती
सब क्या सोचे मेरे बारे मे
किस विध गिर गई अपनों के भार में
हर मौसम में थी वो सब मेरी सहेली
अब जाने की है पहल हमारी
क्या सीख लेंगे सब टहनी मेरे से
जो जुड़ी है अब भी अपनी शाखों से
मुझसे शायद वो इक सीख तो लेगी
सहने से ज्यादा कभी भार ना लेगी
अब मेरा क्या मैं तो सूख जाऊँगी
गठरी में मैं बाँधी जाऊँगी
फिर किसी आग का भोग बनूँगी
फिर मिट्टी में ही मैं मिल जाऊँगी
Ras bhari Kavita..
ReplyDeleteThank you🙏😊
DeleteKya khub👍👌
ReplyDeleteThank you🙏😊
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