महीना सावन भादो का है
फिर पतझड़ सा क्यूँ लगता है
मन से उल्लास जाने कैसे
कुछ फीका फीका सा रहता है
ज़रा सोचो पीड़ा पेड़ों की
पेड़ों को कैसा लगता है
जो बने कली से फूल सभी
एक एक शाखों से झड़ता हैं
ज़रा याद करो पैंतालीस (1945) को
जब दो शहर बर्बाद हुए
उनका सावन न फिर आया
है तब से पतझड़ का साया
ज़रा वक्त निकाल के ध्यान तो दे
क्या बीती वीर की तिरिया पे
आँगन से जाते झूला डाला
ना ख़ुद आया न सावन आया
ज़रा सोच के देखो माँ की व्यथा
जिसने देखा शव बिटिया का
दरिंदे नोच गए बारिश में
कहाँ रहा मायना सावन का
सावन है महीना भक्ति का
पतझड़ है काल का रूप सदा
जब सावन में काल संहार करे
तो व्यर्थ है पतझड़ पे रोना
लगता है पतझड़ जीत गया
बाकी के सारे मासों से
इस बार पता ना कब जाये
झड़ने का मौसम जो है मासों से
🙏👍👌
ReplyDeleteThank you😊🙏
Delete👌👌👌
ReplyDeleteजीवन भी पतझड़ और सावन है।
जो छूट गया वो पतझड़,
जो मिलेगा वो सावन।
सही कहा बिल्कुल, धन्यवाद🙏
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