मेरी भावना - 2

सोचूँ नहीं

क्या होगा सही

बस कर्मों पे चित्त मैं लगाऊँ


होगा सही या

होगा नही 

ये सोच के क्यूँ घबराऊँ


बढ़ते चलूँ

मुस्कुराते मिलूँ

बस ऐसे ही पल मैं कमाऊँ


मेरे हाथ में

जो कुछ भी है

जी जान से वो मैं कर जाऊँ


भूत से सीखूँ

आज चलूँ और

फल को ईनाम सा मानूँ


हरकत मेरी

बरकत बने सब की

बस ऐसे विचार मैं लाऊँ


दया भगवन 

तेरी सब पे बने

बस यही अरदास लगाऊँ


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