टहनी

बसंत आ गया नये पत्ते भी
टहनी पर नन्हे फूलों ने दस्तक दी

मधुमक्खी के दिन भी आ गए
सुगंधों के कण न्यौता दे आये

आकर इतराती करतब दिखलाती
फूलों पे बैठ बस आनंद पाती

फूलों से सारे फल भी बन गए
टहनी छोटी और फल भी लद गए

टहनी छोटी और भार बड़ा
उसके समक्ष संकट है खड़ा

झुक के कितना वो झुकती
मुड़ के कितना वो मुड़ती

टूटी वो हवा के थपेड़ों से
और जुदा हुई अपने पेड़ों से

गिर के बिखरे उसके सब सपने
फल पके नहीं उसके सारे अपने

टहनी ने सोचा कभी ना ऐसा
कि गिरने का कारण क्या होगा ऐसा

फल तो मेरा ही अंश था
कैसे उन्ही से अंत हो गया

फल ही थे मेरी असली कमाई
उनका भार भी मैं सह नहीं पाई

जिस पेड़ का वो थी हिस्सा
कैसे बन गई अब किस्सा

क्या हुई टहनी से गलती
कहाँ खो गई मजबूती

सब क्या सोचे मेरे बारे मे
किस विध गिर गई अपनों के भार में

हर मौसम में थी वो सब मेरी सहेली
अब जाने की है पहल हमारी

क्या सीख लेंगे सब टहनी मेरे से
जो जुड़ी है अब भी अपनी शाखों से

मुझसे शायद वो इक सीख तो लेगी
सहने से ज्यादा कभी भार ना लेगी

अब मेरा क्या मैं तो सूख जाऊँगी
गठरी में मैं बाँधी जाऊँगी

फिर किसी आग का भोग बनूँगी
फिर मिट्टी में ही मैं मिल जाऊँगी

बादलों के आकार

मैं बैठा नभ के नीचे
आगे देखूँ कभी पीछे

नज़रें है टिकी मेरी घन पर
हर दफ़ा रूप ये बदले 

बादल के रूप अनोखे
जो मन, पलकें भी न झपके

पल में कुछ से कुछ बनकर
नित नई पहेली बूझे
 
कभी भोर साँझ रंगीन बने 
जैसे खुशियों की बारातें

कभी बिन रंगों के साए
जैसे दुःखों का साया सर पे

कभी लगे थार सा दूर दूर
जहां जीवन बड़ा विषम हो

कभी लगे ये सागर की लहरें
जो अपनी मौज में चल हो

कभी लगे किनारे तट के
जहां सूरज भी नहाने आए

कभी मेघ वेग से जाते
जैसे जल्दी मे कहीं हो निकले

कभी आपस में ये दौड़ लगाए
मानो कोई तमगा मिलना है

कभी लगे चिराग से जिन्न आकर
मानो हर हूक्म को पूरा करदे

कभी बड़ा लगे गुब्बार धुँए सा
कोई परमाणु द्वंद हो जैसे

कभी लगे रेल की पटरी
जिस पर स्वर्ग की सैर हो पाए

कभी लगे टोलिया मानव की
जो कहीं दूर देश से आए

कभी लगे भीड़ हो मेलों में
जहां खुशियाँ बाँटी जाए

कभी लगे बड़ा रेवड़ का झुंड
जो खेतों से चर के आए

कभी लगे रामसेतू सा मेघ
जहां नल नीर ने पत्थर डाले

कभी लगे हो शिव का मुख मंडल
जो तन पे भष्म रमाए

कभी लगे हो कुटिया शबरी की
जहां राम को बैर खिलाये

कभी लगे दशानन प्रकट हुवे
और देखे क्या पाप कुछ कम है

कभी लगे कि रण में रथ हो खड़ा
और कान्हा गीता पाठ सुनाये

कभी लगे है शैय्या बाणों की
जहां सब भीष्म को शीश नमाये

कभी लगे इंद्र का देवलोक
जहां सब देव सभा मे आए

कभी लगे ये वाहन देवों के
जो धरती पर गश्त लगाए

कभी लगे ये राणा का चेतक
जो हल्दीघाटी चढ़ जाए

कभी लगे तैयार हो चित्ता कहीं 
जहां कोई मुक्ति धाम को पाए

कभी लगे ये मेघ हो धन का ढेर
जो सब को लालच सिखलाए

कभी लगे मशालें बुझी हुई
अब इनको कौन जलाये

कभी लगे मेघ में छुपा कोई
अपना अपनों को खोजे

कभी लगे बादलों संग रवि
जैसे आँखमिचौली खेले

कभी लगे किसानों की आशा
जैसे सपने सब पूरे कर दे

कभी बने किसानों का ये ख़ौफ़
कहीं खेत खराब न कर दे

कभी लगे हिमालय पर्वत 
जो न कभी अपना शीश झुकाये

कभी लगे चांदनी चादर ओढ़े
ये चंदा से शरमाए

कभी लगे ये प्रांगण शाला का
जहां हर कोई शिक्षा पाए

कभी लगे ध्यान में ऋषि मुनि
जो हरि भक्ति में रम जाये

कभी लगे हो गाँधी बापू सा
जो दांडी यात्रा पे जाए

कभी लगे कि जैसे इंसान हो ये
उसके जैसे ही वो रंग बदले

कभी लगे मुकुट हो सतरंगी
जैसे ताजपोशी कर आए

कभी लगे किनारे हो सोने के
जैसे दुल्हन का जोड़ा हो

कभी लगे कि चादर बिन रंगी
जैसे अर्थी पे डाली जाए

घन, बादल, मेघ तेरे नाम अनेक
वैसे ही तेरे दर्शन है

जैसा मेरे मन मे चलता
वैसा ही कुछ दिख जाए

हरियाली से घन आकर्षित है
बस मानव इतना तो समझ पाए

ताकि मेरा मेघों पर ये अनुभव
वो सब महसूस भी कर पाए

Stop cutting trees. Save and grow them.

सैनिक के अल्फ़ाज़

रख दे संभाल के यादें सभी ओ माँ मेरी
लौट के आऊँगा मैं गोद में फिर से तेरी
रख दे संभाल के यादें सभी ओ माँ मेरी

अब तो मैं सो चुका हूँ अंतिम नींद मेरी
फिर से मुझे सोना है सुन के तेरी लोरी
रख दे संभाल के यादें सभी ओ माँ मेरी

काहे को तू रोती है देख के मेरी ये घड़ी
मुस्कुराएगी सुन के फिर से वही किलकारी
रख दे संभाल के यादें सभी ओ माँ मेरी

बार बार आऊँगा मैं आँचल की छाया में तेरी
सैनिक बनूँ मैं हरदम दे आशीष यही
रख दे संभाल के यादें सभी ओ माँ मेरी

पतझड़ सावन

महीना सावन भादो का है

फिर पतझड़ सा क्यूँ लगता है

मन से उल्लास जाने कैसे

कुछ फीका फीका सा रहता है


ज़रा सोचो पीड़ा पेड़ों की

पेड़ों को कैसा लगता है

जो बने कली से फूल सभी

एक एक शाखों से झड़ता हैं


ज़रा याद करो पैंतालीस (1945) को

जब दो शहर बर्बाद हुए

उनका सावन न फिर आया

है तब से पतझड़ का साया


ज़रा वक्त निकाल के ध्यान तो दे

क्या बीती वीर की तिरिया पे

आँगन से जाते झूला डाला

ना ख़ुद आया न सावन आया


ज़रा सोच के देखो माँ की व्यथा

जिसने देखा शव बिटिया का

दरिंदे नोच गए बारिश में

कहाँ रहा मायना सावन का


सावन है महीना भक्ति का

पतझड़ है काल का रूप सदा

जब सावन में काल संहार करे

तो व्यर्थ है पतझड़ पे रोना


लगता है पतझड़ जीत गया

बाकी के सारे मासों से

इस बार पता ना कब जाये

झड़ने का मौसम जो है मासों से

फ़रियाद

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इक आखिरी दफ़ा मुझको सुला ले गोद में माँ
जन्नत तू ही मेरी रब से न कुछ भी माँगना माँ
जन्मोजन्म मिले मुझको तेरा आसरा माँ
जन्नत तू ही मेरी रब से न कुछ भी माँगना माँ


है तू ही ईश्वर मेरा तुझसे ही मेरा ये जहाँ माँ
सजदा करुं तेरा, मस्तक मेरा है झुका माँ
हरदम मिले मुझे आँचल का साया ओ मेरी माँ
जन्नत तू ही मेरी रब से न कुछ भी माँगना माँ


मैं गिरता रहा तू मुझको उठाती रही माँ
मैं भटकता रहा तूने अच्छी सी राह बताई माँ
गिरते भटकते अब मैं, चलने के लायक हो गया माँ
जन्नत तू ही मेरी रब से न कुछ भी माँगना माँ


खाने में नाटक मेरे, हँस के जो तूने सह लिए माँ
सेहत न देखी ख़ुद की, मौसम हो कोई भी भले माँ
हरदम मुझे तूने चाहा जो बनाके दे दिया माँ
जन्नत तू ही मेरी रब से न कुछ भी माँगना माँ

छोटी बात्यां

बात्यां छोटी है पण है खरी
सुणलीजे भाई म्हारा
पिछ्ली पीढ़ी रो सार नकी है
सुणलीजे भाई म्हारा
थांरे मनड़े में बात है कईं दबाई भाई म्हारा
मन में मत घुटीज तू रोगी हुजासी भाई म्हारा

करजो लेके मजो न करीजे कदई भाई म्हारा
पग चादर सूं बारे पसारो नहीं भाई म्हारा

थाने खुद रे बाजू पर भरोसो रखणो है भाई म्हारा
जिको दाबेला बो ही दबेला सुणलीजे भाई म्हारा

मोटो सम्पत सूं कोई खजानो नहीं भाई म्हारा
सगळा ठाठ अठे ही रह जासी सुणलीजे भाई म्हारा

मत सोचिजे मैं ही कमाउँ खाली ओ भाई म्हारा
किरे भाग रो थने मिले है कइंठा भाई म्हारा

बोली राख तू मीठी भोंकिजे नहीं भाई म्हारा
प्रीत सो ठाठ मिले न कदई भाई म्हारा

सांत्वना

एक एक करके जाना है एक दिन सबको
तू काहे करे भारी पलकों को
एक एक करके जाना है एक दिन सबको
तू सोचे और क्या हो जाये अगले पल को
एक एक करके जाना है एक दिन सबको

रोने से आनन्द कभी मिले न उनको
तुम हँस के याद करो उनके साथ बीते पल को
एक एक करके जाना है एक दिन सबको

तू बाँध हिम्मत सबकी न टूटने दो ख़ुद को
उनकी गैर हाज़िर में तुझे पालना है सबको
एक एक करके जाना है एक दिन सबको

है खेल सब करमों का तू दोष मत दे ख़ुद को
आयुष पूरी होने पे अरे गिरना है फल को
एक एक करके जाना है एक दिन सबको

तू आगे निभा उनकी अच्छी बातों को
यही होगी सच्ची श्रद्धांजलि उनको
एक एक करके जाना है एक दिन सबको


इसको एक गाने के रूप में सुनने के लिए नीचे दी गई लिंक पे क्लिक करें
एक एक करके जाना है

तेरी याद

तेरी हामियाँ और मेरी खामियाँ

इनसे ही तेरा मेरा मिलन हुआ

तेरी हामियाँ और मेरी खामियाँ

बस ऐसे ही तेरा मेरा मिलन हुआ


अब जब हमको तेरी आदत हुई है

तू इस दिल से क्यूँ रुखसत हुई है

कुछ तो हमारे बारे में सोचो जाना

कैसे गुजारूं जीवन तेरे बिना


अश्कों की लड़ियाँ पिरोती ही जाए

जब जब मुझको तेरी याद सताए

बीच मझधार माझी जाता भी है क्या

ऐसे भला कोई करता भी है क्या


रातों को जब जब तुझको निहारूँ

अश्कों से सारी तस्वीर भीगा डालूँ

कोई जब मुझसे पूछे क्यों रो रहा हूँ

बस इतना बता कि उनको क्या मैं बोलूँ


ऐसा नहीं हो कि देरी हो जाये

तेरे आने से पहले कहीं हम ना खो जाएं

बैठ के हम सारी उलझन सुलजाले

फिर से वही पुरानी प्रीत निभाले


मेरी भावना - 2

सोचूँ नहीं

क्या होगा सही

बस कर्मों पे चित्त मैं लगाऊँ


होगा सही या

होगा नही 

ये सोच के क्यूँ घबराऊँ


बढ़ते चलूँ

मुस्कुराते मिलूँ

बस ऐसे ही पल मैं कमाऊँ


मेरे हाथ में

जो कुछ भी है

जी जान से वो मैं कर जाऊँ


भूत से सीखूँ

आज चलूँ और

फल को ईनाम सा मानूँ


हरकत मेरी

बरकत बने सब की

बस ऐसे विचार मैं लाऊँ


दया भगवन 

तेरी सब पे बने

बस यही अरदास लगाऊँ


तेरे जाने के बाद

तेरे जाने के बाद तेरा चेहरा
मेरी आँखों पर बस तेरा पहरा
याद तेरी हर पल ही रुलाये
ठहर ठहर पलकें नम जाये
जागूँ सौंऊँ बस तू ही जहन में
थोड़ी देर में लगूँ सिसकने
जब भी कोई काम मे करता
उसमें तेरा अंदाज ढूंढता
कुछ ना सूझे अब मैं करूँ क्या
मेरा जीना जरूरी है क्या
अंतिम बार तुझे देख न पाया
लिपट में तुझसे रो भी न पाया
मनोदशा तेरी क्या होगी
जब तुझको याद मेरी आई होगी
कोई निकट परिचित न था तेरे
शायद ढूंढे अपनों के चेहरे
तूने जो देखे थे सपने
करूँगा मैं अब उनको पूरे
धीरे धीरे मैं संभल जाऊँगा
गिर गिर के चलना सिख जाऊँगा
तेरी कमी हरदम ही खलेगी
अब तेरी संगत मुझे न मिलेगी
बिन तेरे सब सूना सूना
हाय रे ये क्या कर दिया कोरोना

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