Welcome to my blog, where I'll be sharing a variety of poetry on a range of topics. Here, you'll find original works on everything from love, loss, and relationships to nature, politics, and social issues. Poetry has always been a way for me to express my thoughts and emotions, and I'm excited to share my words with you. I hope my writing inspires you to reflect, feel, and connect with the world in new and meaningful ways. Thank you for joining me on this journey.
टहनी
बादलों के आकार
सैनिक के अल्फ़ाज़
लौट के आऊँगा मैं गोद में फिर से तेरी
रख दे संभाल के यादें सभी ओ माँ मेरी
अब तो मैं सो चुका हूँ अंतिम नींद मेरी
फिर से मुझे सोना है सुन के तेरी लोरी
रख दे संभाल के यादें सभी ओ माँ मेरी
काहे को तू रोती है देख के मेरी ये घड़ी
मुस्कुराएगी सुन के फिर से वही किलकारी
रख दे संभाल के यादें सभी ओ माँ मेरी
बार बार आऊँगा मैं आँचल की छाया में तेरी
सैनिक बनूँ मैं हरदम दे आशीष यही
पतझड़ सावन
महीना सावन भादो का है
फिर पतझड़ सा क्यूँ लगता है
मन से उल्लास जाने कैसे
कुछ फीका फीका सा रहता है
ज़रा सोचो पीड़ा पेड़ों की
पेड़ों को कैसा लगता है
जो बने कली से फूल सभी
एक एक शाखों से झड़ता हैं
ज़रा याद करो पैंतालीस (1945) को
जब दो शहर बर्बाद हुए
उनका सावन न फिर आया
है तब से पतझड़ का साया
ज़रा वक्त निकाल के ध्यान तो दे
क्या बीती वीर की तिरिया पे
आँगन से जाते झूला डाला
ना ख़ुद आया न सावन आया
ज़रा सोच के देखो माँ की व्यथा
जिसने देखा शव बिटिया का
दरिंदे नोच गए बारिश में
कहाँ रहा मायना सावन का
सावन है महीना भक्ति का
पतझड़ है काल का रूप सदा
जब सावन में काल संहार करे
तो व्यर्थ है पतझड़ पे रोना
लगता है पतझड़ जीत गया
बाकी के सारे मासों से
इस बार पता ना कब जाये
झड़ने का मौसम जो है मासों से
फ़रियाद
जन्नत तू ही मेरी रब से न कुछ भी माँगना माँ
जन्मोजन्म मिले मुझको तेरा आसरा माँ
जन्नत तू ही मेरी रब से न कुछ भी माँगना माँ
है तू ही ईश्वर मेरा तुझसे ही मेरा ये जहाँ माँ
सजदा करुं तेरा, मस्तक मेरा है झुका माँ
हरदम मिले मुझे आँचल का साया ओ मेरी माँ
जन्नत तू ही मेरी रब से न कुछ भी माँगना माँ
मैं गिरता रहा तू मुझको उठाती रही माँ
मैं भटकता रहा तूने अच्छी सी राह बताई माँ
गिरते भटकते अब मैं, चलने के लायक हो गया माँ
जन्नत तू ही मेरी रब से न कुछ भी माँगना माँ
खाने में नाटक मेरे, हँस के जो तूने सह लिए माँ
सेहत न देखी ख़ुद की, मौसम हो कोई भी भले माँ
हरदम मुझे तूने चाहा जो बनाके दे दिया माँ
जन्नत तू ही मेरी रब से न कुछ भी माँगना माँ
छोटी बात्यां
सुणलीजे भाई म्हारा
पिछ्ली पीढ़ी रो सार नकी है
सुणलीजे भाई म्हारा
थांरे मनड़े में बात है कईं दबाई भाई म्हारा
मन में मत घुटीज तू रोगी हुजासी भाई म्हारा
करजो लेके मजो न करीजे कदई भाई म्हारा
पग चादर सूं बारे पसारो नहीं भाई म्हारा
थाने खुद रे बाजू पर भरोसो रखणो है भाई म्हारा
जिको दाबेला बो ही दबेला सुणलीजे भाई म्हारा
मोटो सम्पत सूं कोई खजानो नहीं भाई म्हारा
सगळा ठाठ अठे ही रह जासी सुणलीजे भाई म्हारा
मत सोचिजे मैं ही कमाउँ खाली ओ भाई म्हारा
किरे भाग रो थने मिले है कइंठा भाई म्हारा
बोली राख तू मीठी भोंकिजे नहीं भाई म्हारा
प्रीत सो ठाठ मिले न कदई भाई म्हारा
सांत्वना
तू काहे करे भारी पलकों को
एक एक करके जाना है एक दिन सबको
तू सोचे और क्या हो जाये अगले पल को
एक एक करके जाना है एक दिन सबको
रोने से आनन्द कभी मिले न उनको
तुम हँस के याद करो उनके साथ बीते पल को
एक एक करके जाना है एक दिन सबको
तू बाँध हिम्मत सबकी न टूटने दो ख़ुद को
उनकी गैर हाज़िर में तुझे पालना है सबको
एक एक करके जाना है एक दिन सबको
है खेल सब करमों का तू दोष मत दे ख़ुद को
आयुष पूरी होने पे अरे गिरना है फल को
एक एक करके जाना है एक दिन सबको
तू आगे निभा उनकी अच्छी बातों को
यही होगी सच्ची श्रद्धांजलि उनको
एक एक करके जाना है एक दिन सबको
इसको एक गाने के रूप में सुनने के लिए नीचे दी गई लिंक पे क्लिक करें
एक एक करके जाना है
तेरी याद
तेरी हामियाँ और मेरी खामियाँ
इनसे ही तेरा मेरा मिलन हुआ
तेरी हामियाँ और मेरी खामियाँ
बस ऐसे ही तेरा मेरा मिलन हुआ
अब जब हमको तेरी आदत हुई है
तू इस दिल से क्यूँ रुखसत हुई है
कुछ तो हमारे बारे में सोचो जाना
कैसे गुजारूं जीवन तेरे बिना
अश्कों की लड़ियाँ पिरोती ही जाए
जब जब मुझको तेरी याद सताए
बीच मझधार माझी जाता भी है क्या
ऐसे भला कोई करता भी है क्या
रातों को जब जब तुझको निहारूँ
अश्कों से सारी तस्वीर भीगा डालूँ
कोई जब मुझसे पूछे क्यों रो रहा हूँ
बस इतना बता कि उनको क्या मैं बोलूँ
ऐसा नहीं हो कि देरी हो जाये
तेरे आने से पहले कहीं हम ना खो जाएं
बैठ के हम सारी उलझन सुलजाले
फिर से वही पुरानी प्रीत निभाले
मेरी भावना - 2
सोचूँ नहीं
क्या होगा सही
बस कर्मों पे चित्त मैं लगाऊँ
होगा सही या
होगा नही
ये सोच के क्यूँ घबराऊँ
बढ़ते चलूँ
मुस्कुराते मिलूँ
बस ऐसे ही पल मैं कमाऊँ
मेरे हाथ में
जो कुछ भी है
जी जान से वो मैं कर जाऊँ
भूत से सीखूँ
आज चलूँ और
फल को ईनाम सा मानूँ
हरकत मेरी
बरकत बने सब की
बस ऐसे विचार मैं लाऊँ
दया भगवन
तेरी सब पे बने
बस यही अरदास लगाऊँ