पानी

नदियों में पानी की कमी है
पारदर्शिता बिन पानी है

कोई जलाशय अब नहीं गिला
झाड़ जो सूखा हो गया पीला

पंछी नहीं कोई बोले बोली
खाली पड़ी है हर इक डाली

दूर दूर तक पैदल जाती
बहू बेटियाँ पानी लाती

कृषक लटकते जाये कब तक
बिन पानी जान गंवाए कब तक

कुछ तो शर्म कर बहाने वाले
टब में डूब के नहाने वाले

रेत ही रेत चारों तरफा है
क्या इंसान से देव खफ़ा है

आसमान है खाली खाली
गर्मी अब ना जाए टाली

बादल रस्ता भूल गये है
या घर से वो निकले नहीं है

पशु बिचारे भटके दर दर
पानी की नहीं बूँद कहीं पर

उनकी नहीं है भूल यहाँ पर
मानव माटी को करता जर जर

कोई इसको सदुपयोग सिखादे
नीर का मूल्य इसे समझा दे

वरना नीर सब लील जाएगा
बाद में तू ही पछतायेगा

ज़रा विवेक से उपयोग करो तुम
अगली पीढ़ी का ध्यान धरो तुम

सोचो बिन पानी क्या होगा
त्राहिमान हर बच्चा होगा

करो विचार अब क्या करना है
व्यर्थ पानी या संचय करना है

इस शुरुआत की तुम से आशा
पशुओं से नहीं कुछ अभिलाषा

पेड़ लगाओ पानी बचाओ
घर घर यह संदेश बढ़ाओ

ठहर ज़रा मौसम बदलेंगे
पेड़ों के भी रंग बदलेंगे

पेड़ घने और छाँवदार होंगे
दरख़्त पे नये पुष्प खिलेंगे

झूम के पंछी फिर आएंगे
हर नीड़ में नन्ही चोंच भरेंगे

सबका जीवन खुशहाल रहेगा
जब तक पास में नीर रहेगा

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