सफ़र

आज तक सबको धोका देता आया हूँ
अच्छा नहीं पर ठीक हूँ कहता आया हूँ

जद्दोजहत के दलदल में हूँ धंसा हुआ सा
पर खड़ी ढ़लान में पानी सा बहता आया हूँ

वफ़ादार बहुत ही कम मिले अब तक के रास्तों में
पर उनसे उनकी बेवफाईयाँ सहता आया हूँ

हूनर खुद को समझने का भी नहीं मुझमें
पर कोशिश सब को समझने की करता आया हूँ

दिल से बचपना नहीं जा रहा अब तक मुझसे
पर आईने से कुछ और ही सुनता आया हूँ

जनाजे अर्थियाँ सबकी मंजिल एक ही होती है
पर उस मंजिल से पहले दिलों में घर बनाता आया हूँ

सफ़र ए ज़िन्दगी सिर्फ़ खुशी का नाम नहीं
ग़म के तूफ़ानों में पलकें खुली रखता आया हूँ

कर्ज़दार हूँ उनकी मदद का, था मैं जब बहुत जरूरत में
हृदय में उनके लिए स्नेह सम्मान हमेशा पालता आया हूँ

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