दो पत्ते

यह वही दो पत्ते हैं
जो धरा चीर निकले हैं
जो बड़े शरमाये से हैं
जो धरा पर बिल्कुल नये हैं
थोड़े वक्त अकेले रहना
सर्दी गर्मी सब अकेले सहना
दुआ है यह जल्द बढ़ेंगे
एक पौधे का रूप ये लेंगे
धरती पर क्यूँ आया है
उन्होंने ध्येय पाया है
रख ध्यान तू इसका बंदे
कर पालन तू इसका बंदे
यह तुझसे कुछ न लेंगे
पर आजीवन सब कुछ देंगे
यह सच्चा प्रेम निभाने
इंसान को यह बतलाने
कि देना सबकुछ औरों को
देना तुम कभी न रोको
जो देता है वो याद रहेगा
सच्चा प्रेम इन्ही से मिलेगा

मोहल्ले की मस्ती

होली की रंगत
दोस्तो की संगत
दीवाली की खुशियाँ
दोस्तों संग तरियाँ
मेलों में मस्ती
लड़कपन की कश्ती
साइकिल पर कटता रास्ता
सुबह ढाबे पर कांदे भुजियों का नाश्ता
गर्मियों की छुट्टियाँ
खुले छ्त पे कटती रतियाँ
मोहल्ले का एक कमरा खास
जमघट दिनभर वही, सारे खेले ताश
बजती सिर्फ स्कूलों में घंटी
थी न कोई मोबाइल की घंटी
सबका एक साथ खाना और फिर
मोहल्ले भर से सबका पान की दुकान पर आना
फ़िजूल के गप्पों की बरसात
बस ऐसे ही शुरू होती सबकी रात
शादी में कैटर्स का न होना
सबको मिलकर बादाम छिलना
क्लब से बर्तनों को गिन के लाना
पतंगों की ऋतु में मांजा सुलझाना
सिर्फ ढाबे में खाने के लिए दिन भर लटाई पकड़ना
एक गेंद के लिए सबसे एक एक रुपया लेना
मोहल्ले भर का एक साथ नया साल मनाना
उसकी तैयारी में एक हफ्ते पहले ही लग जाना
हर खाली जगह पर क्रिकेट के डंडे गाड़ना
उधर गाली मिले तो दूसरी जगह पर जाना
अब सब समझदार हो चुके, कोई फ़िजूल के गप्पे जो नहीं करते
अब सब पैसेवाले हो चुके, सब जन दस दस गेंदें ला सकते
अब सब रईस हो चुके, होटल रिसोर्ट बिन मस्ती नहीं करते
शहर नहीं गाँव भी बदलने लग गए
बिन पैसे के मस्ती के वो दिन भी लद गए

तो सही

तुझे सोचना भी बंद कर दूँ
लेकिन तेरी यादें जहन से जाए तो सही
मैं ताउम्र तेरे इंतज़ार में गुज़ार दूँ
लेकिन तू एक वादा कर जाए तो सही
मैं सारे रिश्ते बखूबी निभा भी दूँ
लेकिन कोई अपना हाथ बढ़ाए तो सही
मैं सारे गिले शिकवे भुला भी दूँ
लेकिन कोई अपनी गलती माने तो सही
मैं तारे तोड़ ला भी दूँ
लेकिन चाँद खुद से घर आये तो सही
मैं ख़ुद को तुझ पर लुटा भी दूँ
लेकिन वह भरोसा कोई दिलाए तो सही
मैं सिसकना बंद कर भी दूँ
लेकिन कोई वह एक वजह बताए तो सही
मैं कभी उठूँ भी न नींद से
कोई फिर से वही गोद बतलाए तो सही
मैं रूठना बंद कर भी दूँ
बस कोई एक बार दिल से मनाए तो सही

मुझे गैरज़रूरी लगा

 उनका बेमतलब का रूठना
और मनाना उन्हें हर छोटी बात पर
मुझे गैरज़रूरी लगा

उन्हें भी रिश्तों की क़दर हो, बेहतर होगा
और सिर्फ अपना आत्मसम्मान खोना
मुझे गैरज़रूरी लगा

मैं भी जी हुजूरी कर सकता था
लेकिन सिर्फ ऊँचाई के लिए गिरना
मुझे गैरज़रूरी लगा

घर में शेर और बाहर निकले दुम हिलाते
और हर काम के लिए अलग मुखोटा
मुझे गैरज़रूरी लगा

चिंतन करो, तुम ख़ुद को टटोलो
लेकिन हर बात का दोष दूसरे पे मंढ़ना
मुझे गैरज़रूरी लगा

भीतर कुटिलता लबों पर हँसी
और ऐसे कोई काम निकलवाना
मुझे गैरज़रूरी लगा

जैसा है वैसा ही रहना "राजा"
किसी भी बात के लिए बदलना
मुझे गैरज़रूरी लगा

पत्थर

हाँ मैं तो पत्थर ही हूँ
कुछ नही बोल पाऊँगा
बर्ताव भले कैसा भी हो
सहनशील हूँ सहता चला जाऊँगा
चोट भले ही करना मुझ पर
संभल के रहना लेकिन
हवा में उड़ता मेरा टुकड़ा कभी भी
आँख में घुसने से पहले
तनिक विचार भी नहीं करेगा
और मैं रोक भी नहीं पाऊँगा
हर मौसम ओ मुश्किल में कहीं नहीं जाऊँगा
इंसान तेरे जैसे में कभी पीठ नहीं दिखाऊँगा
तू तराश ले मुझे और
मंदिर में रख भले
बिछड़े टुकड़ों को भला
मैं कैसे भूल पाऊँगा
टुकड़े जब मेरे 
राहों में बिखरे होंगे
राहगीर के पाँव से
कुचलता उन्हें कैसे देख पाऊँगा
माना मेरी क्षमता है
भार सहना लेकिन
कमजोर निर्माण का दोष
मैं कैसे सह पाऊँगा
हाँ हूँ तो पत्थर ही
कुछ बोल नहीं पाऊँगा

मैं और साकी

है कौनसा जाम अब बाकी
इतना तो बता मेरे साकी
इनसे तो लगी नहीं झपकी
अभी तो रात बहुत है बाकी
क्या है पास तेरे ओ साकी
उसकी यादें हो फीकी ताकि
यादों से जितना मैं भागूँ
सारी कोशिश हो जाये हल्की
सो पाऊँ चैन की निंदिया
बस इतनी आस है बाकी
हुआ सोना मेरा ओ साकी
जैसे लगे यादों की झाँकी
नींदों में जाने मैं क्या क्या
बकने हूँ लगा बेबाकी
कबसे ना जाने मुझे साकी
अच्छी लगने लगी एकांकी
खिलखिलाते जीवन को मेरे
न जाने नज़र लग गई किसकी
है कौनसा जाम अब बाकी
इतना तो बता मेरे साकी

-प्रशान्त सेठिया

सपना

उसके संग रहना
दिन भर बातें करना
हर पल की मस्ती
अब आँख तरसती
कब मिलूँ में तुझसे
रहूँ मैं पहले जैसे
तेरा ख़याल न जाये
वैसे ही नींद आ जाये
तेरा लौट के आना
मुझे गले लगाना
माथा सहलाना
मेरे गाल खीँचना
फिर जी भर की बातें
और टपरी पे जाना
दो कस साथ लगाना
फिर साथ में चाय की चुस्की
अचानक आई खाँसी
मेरी नींद का खुलना
सपने से बाहर आना
जो चला गया उसका 
कैसे लौट के आना
फिर पलकें गीली
दो पल ही सही
इक दफ़ा फिर से मैंने
वही ज़िंदगी जीली

जवानी

तेरी आवाज़ में दम होगा
चक्षु में तेज़ ना कम होगा
सुनेगा दो कोस से तू
थकेगा दिन भर भी ना तू
बदन पर धारा श्रमजल की और 
और गुस्से से फुले धमनी
उम्र का काल ये श्रेष्ठ जानी
इस काल का नाम जवानी

जिम्मेदारी की गठरी लादी
सब गौण इच्छा इत्यादि
मन मे जोश लिए तूफानी
इस काल का नाम जवानी

तू संगत रख मतवाली
जो मन में ठानी कर डाली
जब राजा को मिल जाये रानी
इस काल का नाम जवानी

ये प्रहर जीव का जीवनदायी
बचपन की झलक जो पाई
तेरे तेज़ का ना कोई सानी
इस काल का नाम जवानी

इसी उम्र के चलते भागे
जो ना भागे बड़े अभागे
जो बहके वो करे शैतानी
इस काल का नाम जवानी

सब सपने पूरे करने का
सब संकट को दूर करने का
यह पड़ाव मात्र सुल्तानी
इस काल का नाम जवानी

मत गवां नशे में इसको
मत लूटा व्यर्थ में इसको
फिर ये उम्र न वापस आनी
इस काल का नाम जवानी

माँ बाप की सेवा करना
किसी के दुःखों को कम करना
बस पुण्याई इसमें कमानी
इस काल का नाम जवानी

मेरा जूता

मेरा जूता
कब से है अछूता
लाया था काला
अब लगता है भूरा
बारिशों में 
सिकुड़ा थोड़ा
कसियाँ उसकी
जैसे कलफ़ लगाया
अलमारी से बाहर निकालो
बार बार आवाज़ लगाता
उसको ख़बर क्या
बाहर मंजर क्या छाया
पता नही कब दफ्तर खुलेगा
जब अलमारी से ये बाहर निकलेगा

संभलो यारों

आँसू पोंछो और खुद को संवारों
जाने वाले को जाने दो यारों

तेरी जिम्मेदारी और भी है दुनिया में
हँस के उसी में लग जाओ यारों

किसी के जाने से ज़िन्दगी नहीं थमती
मन को अब तो काबू में करलो यारों

समय सब घाव भर देगा
कोई उससे भी अच्छा आयेगा यारों

तेरा जुड़ाव गलत नहीं है उससे
पर खुद्दारी खुद की भी तो समझो यारों

अकेलापन

अकेले बिताऊँ मैं पहर दर पहर
छत पे बैठूँ और देखूँ ये सारा शहर
अपने अंदर को टटोलूँ है कहाँ पे ज़हर
क्यूँ अनुभव करता हूँ अकेलापन अक्सर

सुन्दर है शहर फिर क्या है कसर
जगमग है रातें फिर दिल क्यूँ है बंजर
कुछ तो छुपा है जो न आता नजर
कैसे बनाऊँ अपने इस मन को अविरल

जो न अच्छा लगे तो क्यूँ बैचेनी का बवंडर
क्यों इतना मन मे फैला विचारों का अंतर
क्यूँ दिल से जाता नहीं इक अनजाना सा डर
कैसे समभाव से हो मेरा गुजर बसर

क्यूँ ना घुल पाता सबसे, 
कैसे हो जाऊँ सबसे मुखर
उधड़े हुए दिल की में कैसे लूँ खबर
कैसे पेश आऊँ बनके सबसे मधुर
कुछ समझ नही आता
कि कब तक रहेगा ऐसा ही मंजर

ले संज्ञान

गूँजने दे चीख़ें
हम सब बहरे हैं
हमें क्या पता कौन है
थोड़ी न हमारी बहने है
दो दिन ख़बर में रहेगी
चर्चे थोड़ी न हर सवेरे में है
ऐसा सोचने वालों
थोड़ा दिमाग पर जोर डालो
मत बनो अनजान
कुछ तो लो संज्ञान
कब तक चुप रहोगे
औरतें तो तुम्हारे घर में भी है
माना तुमने कुछ भी न किया
फिर भी गर चुप रहे तो 
जुर्म का खुद को हिस्सेदार बना लिया

हामी

किवाड़ लगा जाके दिवार पे
वो सीधा घर में घुस आया
पूरा कुटुम्ब विस्मय में था
देखे ये फिर क्या करने आया
मन मेरा बहुत ही विचलित था
न जाने ये अब क्या कर देगा
मेरे ही प्यार में पागल वो
सचमुच आशिक़ दीवाना था
उसने पापा को देख मेरे
कर जोड़ बैठा वो घुटनों पे
और बोल पड़ा हाँ करदो पापा
मैं खुश रखूँगा आपकी बिटिया को
पापा ने अपना मुँह फेर लिया
और लगे देखने मेरे को
मै भी नज़र झुका कर बोली
मैं भी चाहूँ दिल से इसको
हामी अगर मिले आपकी हमको
हम जीवन भर ऋणी रहें दोनों
क्या कुछ नहीं किया आपने अब तक
बस अंतिम इच्छा पूरी कर दो
पापा अब तक जो शांत खड़े
उसको भी गले लगाया था
और बोले तुम दोनों खुशियाँ बाँटो
कोई तकलीफ़ हो तो बता देना
सुनो ओ छोटी की अम्मा
जरा पंडित को घर पे बुला लेना
मुहूर्त दिखवाओ शादी का
छोटी को विदा है अब करना
इतना सुन के मैं दौड़ पड़ी
पापा से लिपट के रोने लगी
आपकी एक "हामी" ने मेरी
जीवन भर की खुशियाँ लिख डाली

टहनी

बसंत आ गया नये पत्ते भी
टहनी पर नन्हे फूलों ने दस्तक दी

मधुमक्खी के दिन भी आ गए
सुगंधों के कण न्यौता दे आये

आकर इतराती करतब दिखलाती
फूलों पे बैठ बस आनंद पाती

फूलों से सारे फल भी बन गए
टहनी छोटी और फल भी लद गए

टहनी छोटी और भार बड़ा
उसके समक्ष संकट है खड़ा

झुक के कितना वो झुकती
मुड़ के कितना वो मुड़ती

टूटी वो हवा के थपेड़ों से
और जुदा हुई अपने पेड़ों से

गिर के बिखरे उसके सब सपने
फल पके नहीं उसके सारे अपने

टहनी ने सोचा कभी ना ऐसा
कि गिरने का कारण क्या होगा ऐसा

फल तो मेरा ही अंश था
कैसे उन्ही से अंत हो गया

फल ही थे मेरी असली कमाई
उनका भार भी मैं सह नहीं पाई

जिस पेड़ का वो थी हिस्सा
कैसे बन गई अब किस्सा

क्या हुई टहनी से गलती
कहाँ खो गई मजबूती

सब क्या सोचे मेरे बारे मे
किस विध गिर गई अपनों के भार में

हर मौसम में थी वो सब मेरी सहेली
अब जाने की है पहल हमारी

क्या सीख लेंगे सब टहनी मेरे से
जो जुड़ी है अब भी अपनी शाखों से

मुझसे शायद वो इक सीख तो लेगी
सहने से ज्यादा कभी भार ना लेगी

अब मेरा क्या मैं तो सूख जाऊँगी
गठरी में मैं बाँधी जाऊँगी

फिर किसी आग का भोग बनूँगी
फिर मिट्टी में ही मैं मिल जाऊँगी

बादलों के आकार

मैं बैठा नभ के नीचे
आगे देखूँ कभी पीछे

नज़रें है टिकी मेरी घन पर
हर दफ़ा रूप ये बदले 

बादल के रूप अनोखे
जो मन, पलकें भी न झपके

पल में कुछ से कुछ बनकर
नित नई पहेली बूझे
 
कभी भोर साँझ रंगीन बने 
जैसे खुशियों की बारातें

कभी बिन रंगों के साए
जैसे दुःखों का साया सर पे

कभी लगे थार सा दूर दूर
जहां जीवन बड़ा विषम हो

कभी लगे ये सागर की लहरें
जो अपनी मौज में चल हो

कभी लगे किनारे तट के
जहां सूरज भी नहाने आए

कभी मेघ वेग से जाते
जैसे जल्दी मे कहीं हो निकले

कभी आपस में ये दौड़ लगाए
मानो कोई तमगा मिलना है

कभी लगे चिराग से जिन्न आकर
मानो हर हूक्म को पूरा करदे

कभी बड़ा लगे गुब्बार धुँए सा
कोई परमाणु द्वंद हो जैसे

कभी लगे रेल की पटरी
जिस पर स्वर्ग की सैर हो पाए

कभी लगे टोलिया मानव की
जो कहीं दूर देश से आए

कभी लगे भीड़ हो मेलों में
जहां खुशियाँ बाँटी जाए

कभी लगे बड़ा रेवड़ का झुंड
जो खेतों से चर के आए

कभी लगे रामसेतू सा मेघ
जहां नल नीर ने पत्थर डाले

कभी लगे हो शिव का मुख मंडल
जो तन पे भष्म रमाए

कभी लगे हो कुटिया शबरी की
जहां राम को बैर खिलाये

कभी लगे दशानन प्रकट हुवे
और देखे क्या पाप कुछ कम है

कभी लगे कि रण में रथ हो खड़ा
और कान्हा गीता पाठ सुनाये

कभी लगे है शैय्या बाणों की
जहां सब भीष्म को शीश नमाये

कभी लगे इंद्र का देवलोक
जहां सब देव सभा मे आए

कभी लगे ये वाहन देवों के
जो धरती पर गश्त लगाए

कभी लगे ये राणा का चेतक
जो हल्दीघाटी चढ़ जाए

कभी लगे तैयार हो चित्ता कहीं 
जहां कोई मुक्ति धाम को पाए

कभी लगे ये मेघ हो धन का ढेर
जो सब को लालच सिखलाए

कभी लगे मशालें बुझी हुई
अब इनको कौन जलाये

कभी लगे मेघ में छुपा कोई
अपना अपनों को खोजे

कभी लगे बादलों संग रवि
जैसे आँखमिचौली खेले

कभी लगे किसानों की आशा
जैसे सपने सब पूरे कर दे

कभी बने किसानों का ये ख़ौफ़
कहीं खेत खराब न कर दे

कभी लगे हिमालय पर्वत 
जो न कभी अपना शीश झुकाये

कभी लगे चांदनी चादर ओढ़े
ये चंदा से शरमाए

कभी लगे ये प्रांगण शाला का
जहां हर कोई शिक्षा पाए

कभी लगे ध्यान में ऋषि मुनि
जो हरि भक्ति में रम जाये

कभी लगे हो गाँधी बापू सा
जो दांडी यात्रा पे जाए

कभी लगे कि जैसे इंसान हो ये
उसके जैसे ही वो रंग बदले

कभी लगे मुकुट हो सतरंगी
जैसे ताजपोशी कर आए

कभी लगे किनारे हो सोने के
जैसे दुल्हन का जोड़ा हो

कभी लगे कि चादर बिन रंगी
जैसे अर्थी पे डाली जाए

घन, बादल, मेघ तेरे नाम अनेक
वैसे ही तेरे दर्शन है

जैसा मेरे मन मे चलता
वैसा ही कुछ दिख जाए

हरियाली से घन आकर्षित है
बस मानव इतना तो समझ पाए

ताकि मेरा मेघों पर ये अनुभव
वो सब महसूस भी कर पाए

Stop cutting trees. Save and grow them.

सैनिक के अल्फ़ाज़

रख दे संभाल के यादें सभी ओ माँ मेरी
लौट के आऊँगा मैं गोद में फिर से तेरी
रख दे संभाल के यादें सभी ओ माँ मेरी

अब तो मैं सो चुका हूँ अंतिम नींद मेरी
फिर से मुझे सोना है सुन के तेरी लोरी
रख दे संभाल के यादें सभी ओ माँ मेरी

काहे को तू रोती है देख के मेरी ये घड़ी
मुस्कुराएगी सुन के फिर से वही किलकारी
रख दे संभाल के यादें सभी ओ माँ मेरी

बार बार आऊँगा मैं आँचल की छाया में तेरी
सैनिक बनूँ मैं हरदम दे आशीष यही
रख दे संभाल के यादें सभी ओ माँ मेरी

पतझड़ सावन

महीना सावन भादो का है

फिर पतझड़ सा क्यूँ लगता है

मन से उल्लास जाने कैसे

कुछ फीका फीका सा रहता है


ज़रा सोचो पीड़ा पेड़ों की

पेड़ों को कैसा लगता है

जो बने कली से फूल सभी

एक एक शाखों से झड़ता हैं


ज़रा याद करो पैंतालीस (1945) को

जब दो शहर बर्बाद हुए

उनका सावन न फिर आया

है तब से पतझड़ का साया


ज़रा वक्त निकाल के ध्यान तो दे

क्या बीती वीर की तिरिया पे

आँगन से जाते झूला डाला

ना ख़ुद आया न सावन आया


ज़रा सोच के देखो माँ की व्यथा

जिसने देखा शव बिटिया का

दरिंदे नोच गए बारिश में

कहाँ रहा मायना सावन का


सावन है महीना भक्ति का

पतझड़ है काल का रूप सदा

जब सावन में काल संहार करे

तो व्यर्थ है पतझड़ पे रोना


लगता है पतझड़ जीत गया

बाकी के सारे मासों से

इस बार पता ना कब जाये

झड़ने का मौसम जो है मासों से

फ़रियाद

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इक आखिरी दफ़ा मुझको सुला ले गोद में माँ
जन्नत तू ही मेरी रब से न कुछ भी माँगना माँ
जन्मोजन्म मिले मुझको तेरा आसरा माँ
जन्नत तू ही मेरी रब से न कुछ भी माँगना माँ


है तू ही ईश्वर मेरा तुझसे ही मेरा ये जहाँ माँ
सजदा करुं तेरा, मस्तक मेरा है झुका माँ
हरदम मिले मुझे आँचल का साया ओ मेरी माँ
जन्नत तू ही मेरी रब से न कुछ भी माँगना माँ


मैं गिरता रहा तू मुझको उठाती रही माँ
मैं भटकता रहा तूने अच्छी सी राह बताई माँ
गिरते भटकते अब मैं, चलने के लायक हो गया माँ
जन्नत तू ही मेरी रब से न कुछ भी माँगना माँ


खाने में नाटक मेरे, हँस के जो तूने सह लिए माँ
सेहत न देखी ख़ुद की, मौसम हो कोई भी भले माँ
हरदम मुझे तूने चाहा जो बनाके दे दिया माँ
जन्नत तू ही मेरी रब से न कुछ भी माँगना माँ

छोटी बात्यां

बात्यां छोटी है पण है खरी
सुणलीजे भाई म्हारा
पिछ्ली पीढ़ी रो सार नकी है
सुणलीजे भाई म्हारा
थांरे मनड़े में बात है कईं दबाई भाई म्हारा
मन में मत घुटीज तू रोगी हुजासी भाई म्हारा

करजो लेके मजो न करीजे कदई भाई म्हारा
पग चादर सूं बारे पसारो नहीं भाई म्हारा

थाने खुद रे बाजू पर भरोसो रखणो है भाई म्हारा
जिको दाबेला बो ही दबेला सुणलीजे भाई म्हारा

मोटो सम्पत सूं कोई खजानो नहीं भाई म्हारा
सगळा ठाठ अठे ही रह जासी सुणलीजे भाई म्हारा

मत सोचिजे मैं ही कमाउँ खाली ओ भाई म्हारा
किरे भाग रो थने मिले है कइंठा भाई म्हारा

बोली राख तू मीठी भोंकिजे नहीं भाई म्हारा
प्रीत सो ठाठ मिले न कदई भाई म्हारा

सांत्वना

एक एक करके जाना है एक दिन सबको
तू काहे करे भारी पलकों को
एक एक करके जाना है एक दिन सबको
तू सोचे और क्या हो जाये अगले पल को
एक एक करके जाना है एक दिन सबको

रोने से आनन्द कभी मिले न उनको
तुम हँस के याद करो उनके साथ बीते पल को
एक एक करके जाना है एक दिन सबको

तू बाँध हिम्मत सबकी न टूटने दो ख़ुद को
उनकी गैर हाज़िर में तुझे पालना है सबको
एक एक करके जाना है एक दिन सबको

है खेल सब करमों का तू दोष मत दे ख़ुद को
आयुष पूरी होने पे अरे गिरना है फल को
एक एक करके जाना है एक दिन सबको

तू आगे निभा उनकी अच्छी बातों को
यही होगी सच्ची श्रद्धांजलि उनको
एक एक करके जाना है एक दिन सबको


इसको एक गाने के रूप में सुनने के लिए नीचे दी गई लिंक पे क्लिक करें
एक एक करके जाना है

तेरी याद

तेरी हामियाँ और मेरी खामियाँ

इनसे ही तेरा मेरा मिलन हुआ

तेरी हामियाँ और मेरी खामियाँ

बस ऐसे ही तेरा मेरा मिलन हुआ


अब जब हमको तेरी आदत हुई है

तू इस दिल से क्यूँ रुखसत हुई है

कुछ तो हमारे बारे में सोचो जाना

कैसे गुजारूं जीवन तेरे बिना


अश्कों की लड़ियाँ पिरोती ही जाए

जब जब मुझको तेरी याद सताए

बीच मझधार माझी जाता भी है क्या

ऐसे भला कोई करता भी है क्या


रातों को जब जब तुझको निहारूँ

अश्कों से सारी तस्वीर भीगा डालूँ

कोई जब मुझसे पूछे क्यों रो रहा हूँ

बस इतना बता कि उनको क्या मैं बोलूँ


ऐसा नहीं हो कि देरी हो जाये

तेरे आने से पहले कहीं हम ना खो जाएं

बैठ के हम सारी उलझन सुलजाले

फिर से वही पुरानी प्रीत निभाले


मेरी भावना - 2

सोचूँ नहीं

क्या होगा सही

बस कर्मों पे चित्त मैं लगाऊँ


होगा सही या

होगा नही 

ये सोच के क्यूँ घबराऊँ


बढ़ते चलूँ

मुस्कुराते मिलूँ

बस ऐसे ही पल मैं कमाऊँ


मेरे हाथ में

जो कुछ भी है

जी जान से वो मैं कर जाऊँ


भूत से सीखूँ

आज चलूँ और

फल को ईनाम सा मानूँ


हरकत मेरी

बरकत बने सब की

बस ऐसे विचार मैं लाऊँ


दया भगवन 

तेरी सब पे बने

बस यही अरदास लगाऊँ


तेरे जाने के बाद

तेरे जाने के बाद तेरा चेहरा
मेरी आँखों पर बस तेरा पहरा
याद तेरी हर पल ही रुलाये
ठहर ठहर पलकें नम जाये
जागूँ सौंऊँ बस तू ही जहन में
थोड़ी देर में लगूँ सिसकने
जब भी कोई काम मे करता
उसमें तेरा अंदाज ढूंढता
कुछ ना सूझे अब मैं करूँ क्या
मेरा जीना जरूरी है क्या
अंतिम बार तुझे देख न पाया
लिपट में तुझसे रो भी न पाया
मनोदशा तेरी क्या होगी
जब तुझको याद मेरी आई होगी
कोई निकट परिचित न था तेरे
शायद ढूंढे अपनों के चेहरे
तूने जो देखे थे सपने
करूँगा मैं अब उनको पूरे
धीरे धीरे मैं संभल जाऊँगा
गिर गिर के चलना सिख जाऊँगा
तेरी कमी हरदम ही खलेगी
अब तेरी संगत मुझे न मिलेगी
बिन तेरे सब सूना सूना
हाय रे ये क्या कर दिया कोरोना

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एक अपील

पता नहीं ये कब समझेंगे
सरकार की बात ये कब मानेंगे
क्यों जीवन को यूँ ठुकराते
जान का मुल्य ये कब जानेंगे

चौड़ी सड़कें संकरी गलियाँ
जाने का ना कोई ज़रिया
फिर भी निकले, घूमे, डोले
बार बार क्या तुझको बोले

क्या उनके परिवार नहीं है
मोहब्बत से सारोबार नहीं है
मत बन पागल अब भी संभल ले
घर में रुक, यात्रा को टाल ले

मुश्किल से जो गति मिली थी
शनि जाल में पड़ी फंसी सी
अर्थ तंत्र बैसाखी पकड़े
बढ़ने को वह हरदम तरसे

मानव का नाम बचाले मानव
मत बन तू अब फिर से दानव
बर्ताव में थोड़ी नरमी धरले
जो बोले योद्धा उसको सुनले

योद्धाओं पर सारा देश है आश्रित
फिर भी क्यूँ करते अपमानित
कुछ तो शर्म हृदय में भर लो
इंसानियत का परिचय तो दो

ये युद्ध नहीं किसी शत्रु से है
लड़ाई ख़ुद की ख़ुद से ही है
जो संयम का शस्त्र धरेगा
"कोविड" उसका कुछ न करेगा

हाथ जोड़ करूँ सबसे विनती
मानो जीवन बहुत कीमती
मत फैलाओ कोविड को तुम
रहो सचेत सुरक्षित हरदम

महामारी

बेबसी इंसानों में ऐसी देखी नहीं
खतरा है या चेतावनी कुदरत की
अभी तक क्रूरता महामारी की ऐसी देखी नहीं

इंसानों को खतरा इंसानों से हमेशा ही रहा है
बिना अस्त्र शस्त्र की मारामारी ऐसी देखी नहीं

राजाओं के महल भी अछूते नहीं रहे
इंसानों को इंसानों से घबराहट ऐसी देखी नहीं

जो घूमते थे बेपरवाह घर से बाहर
उन्होंने घर में नजरबंदी ऐसी देखी नहीं

कुदरत के ख़िलाफ़ मानव कितना जायेगा भला
खुद के खिलाफ कुदरत की नियती ऐसी देखी नहीं

सैंकड़ों महामारियों ने घेरा है मानव जाति को
पर जैसी तबाही "कोरोना" से हुई है
अब तक तबाही ऐसी देखी नहीं

दृष्टि

शहंशाओं के रुतबे ज़ार होते देखे हैं
शब्दों के बाण दिल के पार होते देखे हैं
कर्मो के खेल अदभुत होते है
सारथी को ज्ञान का संचार करते देखे हैं

कभी शांत तो कभी दरिया में ज्वार देखे है
मन मे उठे सैकड़ों विचार देखे हैं
इश्क़ के दीवाने यूँहीं बदनाम नहीं होते हैं
लौ में जलते पतंगे हज़ार देखे है

अबला पे समाज को सवार होते देखे है
भरी सभा में पंडितों को गंवार होते देखे है
सही औऱ गलत समय के अधीन ही तो होते है
नारी अपमान से सैकड़ों संहार होते देखे है

हट्टे कट्टे को बीमार होते देखे हैं
कुरीतियों से बिकते घर बार देखे हैं
एक चेहरे में अनेकों किरदार होते है
दिलों में अंधेरे किन्तु रोशन बाज़ार होते देखे है

प्यार से सराबोर कभी, बंटते परिवार देखे हैं
सगे भाइयों में मनमुटाव अपार देखे हैं
जर ज़मीन क्या कभी साथ में जाते है
बस इसी चक्कर में रिश्ते तार तार होते देखे हैं

इंसानों में ही देव और दानवों के अवतार होते देखे हैं
दवाखानों में इंसानियत के व्यापार होते देखे हैं
सब चिकित्सक ऐसे ही नहीं होते है
बाबा आम्टे जैसों के सम्पूर्ण जीवन,
समाज कल्याण में निसार होते देखे है

आदमी के पीछे औरत की ज़िन्दगी के रंग निकलते देखे है
लाख तानों के बावजूद बच्चों की ढ़ाल होते देखे है
पता नही कि औलाद ये त्याग कैसे समझते है
पर माताओं के दिल हमेशा ही दिलदार होते देखे है

पानी

नदियों में पानी की कमी है
पारदर्शिता बिन पानी है

कोई जलाशय अब नहीं गिला
झाड़ जो सूखा हो गया पीला

पंछी नहीं कोई बोले बोली
खाली पड़ी है हर इक डाली

दूर दूर तक पैदल जाती
बहू बेटियाँ पानी लाती

कृषक लटकते जाये कब तक
बिन पानी जान गंवाए कब तक

कुछ तो शर्म कर बहाने वाले
टब में डूब के नहाने वाले

रेत ही रेत चारों तरफा है
क्या इंसान से देव खफ़ा है

आसमान है खाली खाली
गर्मी अब ना जाए टाली

बादल रस्ता भूल गये है
या घर से वो निकले नहीं है

पशु बिचारे भटके दर दर
पानी की नहीं बूँद कहीं पर

उनकी नहीं है भूल यहाँ पर
मानव माटी को करता जर जर

कोई इसको सदुपयोग सिखादे
नीर का मूल्य इसे समझा दे

वरना नीर सब लील जाएगा
बाद में तू ही पछतायेगा

ज़रा विवेक से उपयोग करो तुम
अगली पीढ़ी का ध्यान धरो तुम

सोचो बिन पानी क्या होगा
त्राहिमान हर बच्चा होगा

करो विचार अब क्या करना है
व्यर्थ पानी या संचय करना है

इस शुरुआत की तुम से आशा
पशुओं से नहीं कुछ अभिलाषा

पेड़ लगाओ पानी बचाओ
घर घर यह संदेश बढ़ाओ

ठहर ज़रा मौसम बदलेंगे
पेड़ों के भी रंग बदलेंगे

पेड़ घने और छाँवदार होंगे
दरख़्त पे नये पुष्प खिलेंगे

झूम के पंछी फिर आएंगे
हर नीड़ में नन्ही चोंच भरेंगे

सबका जीवन खुशहाल रहेगा
जब तक पास में नीर रहेगा

तिनका तिनका

तिनका तिनका ले उड़ा
तरुवर से खग आकाश
एक घरोंदा बन जाए
बस इतनी सी आस

उसे खबर नहीं आएगी आँधी
फिर से वही होगी बर्बादी
फिर से उसको जाना होगा
तिनका तिनका लाना होगा

इसी बीच कहीं थक जाएगा
लौट के वापस न वो आएगा
कहीं तिनकों के ऊपर लेटा
विचार करे मैंने क्या है समेटा

ना कुछ लाया ना कुछ संग में
दर्द भरा मेरे रग रग में
साथी मेरा इंतज़ार करेंगे
उड़ के खोज खबर भी लेंगे

लेकिन मैं कहीं मिल न पाऊँगा
थोड़े दिन यादों में रहूँगा
यही श्रृंखला अब तक चली है
घर के पीछे इक उम्र कटी है

कब तक ऐसा चलता रहेगा
दाने पानी को तकता रहेगा
उम्र है छोटी ये ध्यान तू धरले
थोड़ी पुण्य कमाई करले

राम नाम का भजन नहीं सब कुछ
पर इसके सिवा संग चले ना अब कुछ
तिनके के संग मणका फ़िरा ले
जनम मरण से पीछा छुड़ा ले

रघुवर तेरे नाम का ये मन
सुमिरण करता जाए
जो मेरे बस में नहीं बस
वो तू ही पार लगाए

क्यूँ आँसू आया

एक वारी मुझको
था रोना आया
मैं समझ न पाया
क्यूँ आँसू आया

गीला था तकिया
थी धीमी सिसकियां
मैं समझ न पाया
क्यूँ आँसू आया

ना कोई गम था
न मैं हँसा जोर से
फिर भी न समझा
क्यूँ आँसू आया

न थी बहना की डोली
न लिफ़ाफ़े में कोई मोळी
फिर भी ना समझा
क्यूँ आँसू आया

था बापू ने ना डाँटा
न अनुभव कोई कड़वा
फिर भी ना समझा
क्यूँ आँसू आया

कोई ना था मुझसे गुस्सा
कोई ना था मुझसे रूठा
फिर भी ना समझा
क्यूँ आँसू आया

अब मैं वो रहा नहीं

अब मैं वो रहा नहीं
बचपन मेरा खोया कहीं
नासमझ मेरा मन था
वो समझ गुम है कहीं
अब मैं वो रहा नहीं

बिन बताये न था जाता कहीं
चौखट पे माँ गर होती देरी
माँ से जो अब दूर हुआ
ना वो गोदी ना ही वो लोरी
अब मैं वो रहा नहीं

सब फ़रमाईसें पापा से थी
पतंगें हों या गोली होली
अब घर चलाने मैं लगा
कुछ ना कुछ तब से है बाकी
अब मैं वो रहा नहीं

सबसे ज्यादा था मैं जिद्दी
गुस्सा जिसका हरपल साथी
जो कैसे बेजुबां हुआ
कुछ तो दबा दिल में भारी
अब मैं वो रहा नहीं

पल यारों के जो याद आएं कभी
पलकें भीगें लब पे हँसी
अब जैसे सब गुम हुआ
चारों तरफा दुनिया नई
अब मैं वो रहा नहीं

तेरी कमी है

ये रातें इतनी लंबी नहीं है
यादों में तुम,
करवटों में तुम,
और तेरी कमी है

सुबह खुशनुमा, अखबार बिन खुला
गुनगुना पानी,
चाय की प्याली,
बस तेरी कमी है

मंदिर में भगवन, माहौल पावन,
घंटियों की ध्वनि,
ध्वजों की खनखनी,
बस तेरी कमी है

ये पुरवाई इतनी भी ठंडी नहीं है
खिड़की खुली,
सर्द हवा घुली,
बस तेरी कमी है

जीवन मेरा इतना भी उलझा नहीं है
भावनायें बही,
बाकी सब सही,
बस तेरी कमी है

नग़मा भी है, साज भी है
मौका भी है,
गाने को मैं,
बस तेरी कमी है

राहें सुनहरी, मंजिल में तू है
ख्वाबों में तुम,
ख़यालों में तुम
बस तेरी कमी है

मुसाफ़िर तेरा

साथी बिना तेरे मुझको नहीं है कोई आसरा
भटकता फिरूँ मैं, हूँ जैसे कोई बावरा

अंधेरा है पसरा, नहीं दिन है उजला मेरा
रातें जगाती, यही अब है मंजर मेरा

यादें रुलाती है जिनमें था हँसता बसेरा तेरा
जीवन का सदमा वो गहरा यूँ जाना तेरा

तुझसा मिला है न मुझको अभी तक कोई दूसरा
शायद मेरा दिल नही मेरे बस में, हो चुका है तेरा

सावन अभी बारह महिनों ही छाया हुआ सा
घनघोर मौसम न लगता ये ढ़लता हुआ सा

मन में मूरतिया तेरी और हाथ में माला मनका
धोखा मैं दे रहा हूँ तुझको या है वो सांवरा

गरिमा नहीं शेष मुझमें ये बस बतला रहा
ढीठ हो चुका मैं तेरे बिन अब न जिया जा रहा

हड़बड़ी

मैं जागा, की मस्ती
हो गई सोने में देरी

मैं जागा, और भागा
फिर भी छूटी मेरी गाड़ी

पकड़ी फिर, मैंने अगली
काले कोट ने पर्ची फाड़ी

मैं चोंका, फिर बोला
भैया मेरी छूटी गाड़ी

वो देखा, मुस्काया
बोला मत समझो मुझे अनाड़ी

मैनें देखा, पर्ची को
गुस्से से फूली नाड़ी

फिर संभला, और सोचा
खुजलाते मेरी दाढ़ी

दे ही दूँ, जो ये मांगे
ताकि ना हो मुझको देरी

फिर देखा, और ढूंढ़ा
बटवा क्यूँ खेले आँखमीचोली

अब लाऊँ, मैं कहाँ से
ना मेरे पास थी फूटी कोड़ी

घर छूटा, मेरा बटवा
और थी साथ में उसके चाबी

अब उसको, क्या बोलूँ
धकधक करती मेरी नाभि

जितने में, वो बोला
भाई हो गई क्या गड़बड़ी

मैं बोला, घर छूटा
बटवा जिसमें थी दमड़ी

मुझको तुम, जाने दो
कर दो मुझपे मेहरबानी

कल दूँगा, में तुमको
वैसे भी रकम न है ये भारी

समझा वो, कारण भी
और जाने की आज्ञा दी

मैं मुस्काया, मन ही मन में
और दे डाली उसको झप्पी

मैं भागा, अब वहाँ से
सोचा न हो कभी ऐसी "हड़बड़ी"

सफ़र

आज तक सबको धोका देता आया हूँ
अच्छा नहीं पर ठीक हूँ कहता आया हूँ

जद्दोजहत के दलदल में हूँ धंसा हुआ सा
पर खड़ी ढ़लान में पानी सा बहता आया हूँ

वफ़ादार बहुत ही कम मिले अब तक के रास्तों में
पर उनसे उनकी बेवफाईयाँ सहता आया हूँ

हूनर खुद को समझने का भी नहीं मुझमें
पर कोशिश सब को समझने की करता आया हूँ

दिल से बचपना नहीं जा रहा अब तक मुझसे
पर आईने से कुछ और ही सुनता आया हूँ

जनाजे अर्थियाँ सबकी मंजिल एक ही होती है
पर उस मंजिल से पहले दिलों में घर बनाता आया हूँ

सफ़र ए ज़िन्दगी सिर्फ़ खुशी का नाम नहीं
ग़म के तूफ़ानों में पलकें खुली रखता आया हूँ

कर्ज़दार हूँ उनकी मदद का, था मैं जब बहुत जरूरत में
हृदय में उनके लिए स्नेह सम्मान हमेशा पालता आया हूँ

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You made me cry

You made me cry
Why didn't you feel then shy
When my tears rolled down
And they didn't get dry
And When no truths only lies
That's how you made my life
You only made me cry

You only made promises
but didn't drive a mile for them
All of sudden you became a wise
And made me feel I committed a crime
That's how you made my life
You only made me cry

Keep yourself in my shoes and try
Tell me what you realize
When you start dwelling into my soul
Then just imagine of my deny
That's how you made my life
You only made me cry

One last time, close your eyes
Please think with the sigh
My head and your thigh
Togetherness in our low and high
Come again and we will shine
With god's grace and happiness multiply
Then we won't be crying
Then we won't be crying

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