अंजान की अच्छी सोच

वो भाग रहा, मैं था बस में
खिड़कियाँ बस की सारी बंद थी

बारिश बहुत जोरों की थी
उसकी भी छतरी, न सर पर थी

बस में न जगह चींटी की थी
तो चालक ने बस रोकी भी ना थी

क्यूँ मेरा ध्यान गया उस पर
क्यूँ सोच पड़ा मैं भी क्षण भर

बोलूँ चालक को थोड़ा ठहर भी जा
लेले उसको, मत छोड़ के जा

कोई तो उसका भी इंतज़ार करे
शायद माँ ही हो जो चिंतित विचार करे

मैंने सच्चे मन से प्रभु को याद किया
वैसे ही सिग्नल लाल हुआ

अब दो मिनट बस रुक जायेगी
उसको भी ये बस मिल जायेगी

उसके चेहरे पे मुस्कान खिली
जब उसको भी बस में जगह मिली

भागे भागे वो पूरा भीग गया
अदा शुक्रिया प्रभु का फिर भी उसने था किया

मेरे मन में भी शुकून आया
मैंने भी प्रभु को प्रणाम किया

किसी अंजान का था सोचा अच्छा
और मेरा भी मन प्रसन्न हुआ

पहाड़ों के पत्थर

ये बारिश के पानी का आलम तो देखो
पहाड़ों के पत्थर भी डरने लगे है
कहीं संग बहाके न ले जाये मुझको
या घिस के कहीं कोई मंदिर में न रख दे

माना कि मुझमें न कोई उपज है
पर आज़ादी की तो मुझको भी समझ है
गर मैं स्थापित हो गया मंदिर में
तो बाहर आना मुमकिन होगा कैसे

मंदिर के बाहर जो बैठे है विचलित
अपनी जान से होते हैं वंचित
वो भी पहाड़ों पे आते है रोते है
प्रतिध्वनि उनकी अब कौन सुनेगा

गर मुझको मंदिर में कोई रख देगा
सोचो कोई भी मौसम मुझे न मिलेगा
न सुन सकूँगा मैं पत्तों की बातें
और ना ही वो बारिश का नज़ारा भी होगा

रात को रहना पड़ेगा तालों में
जकड़ा रहा ना पहले ऐसा कभी मैं
गर कोई भक्त मुझे ले भी गया बाहर
समझो भौर होने से पहले हंगामा तैयार मिलेगा

जो बच भी गया मैं मंदिर जाने से
नदियों में ठोकर खाता रहूँगा
या कोई रस्ते का रोड़ा बनूँगा
और किसी रुन्दन का कारण भी बनूँगा

मुझको ख़ुशी है कि मेरी वजह से
बहुतों ने सूरज की पहली किरणें है देखी
पर मुझे गम है मेरा यूँ बिल्कुल जड़ सा होना
मैं किसी डूबते सूरज को कभी ना रोक पाया

हे नाथ तेरी, जय जय जय

तूझ से प्रारम्भ
तुझ से प्रलय
हे नाथ तेरी
जय जय जय

तू ही गगन
तू ही सतह
हे नाथ तेरी
जय जय जय

और क्या दूँ
तेरा परिचय
हे नाथ तेरी
जय जय जय

देखूं तुझे तो
हो जांउँ विस्मय
हे नाथ तेरी
जय जय जय

तू ही सागर
तू हिमालय
हे नाथ तेरी
जय जय जय

तू काटे कलेश
और भागे भय
हे नाथ तेरी
जय जय जय

जिसका न कोई
तू उसकी सराय
हे नाथ तेरी
जय जय जय

तू ही सरल
अनसुलझी प्रमेय
हे नाथ तेरी
जय जय जय

भटके जो राही
तो पाये गंतव्य
हे नाथ तेरी
जय जय जय

कर पाये निर्णय
ना रहे संशय
हे नाथ तेरी
जय जय जय

कहाँ भूल पाया

वो सुनसान सी
जो इक रात थी
मैं उस को अभी तक
कहाँ भूल पाया

मेरा यूँ बुलाना
तेरा मान जाना
मैं उन पलों को
कहाँ भूल पाया

वो रात आधी और चाँद पूरा
मेरे पास भी था चमकता सितारा
मैं उस सितारे को
कहाँ भूल पाया

वो शरमाता चेहरा
चुप रहने का इशारा
मैं उस इशारे को
कहाँ भूल पाया

मिलते ही तुमसे
तुझे बाँहों में भरना
मैं उन इरादों को
कहाँ भूल पाया

और ठुडी पकड़ के
माथा चुम जाना
मैं वो सारी हरकत
कहाँ भूल पाया