चलना

रुकता चलूँ
संभलता चलूँ
अपनी वाणी को
परखता चलूँ

आहट सुनूं
पीछे मुडूं
कोई बुलाये
तो मैं भी रुकूँ

पलके भरूँ
हँस के जीऊँ
औरों के सुख दुःख का
साझी बनू

जब भी कहूँ
कुछ सच्चा कहूँ
वरना मैं लब पे
चुप्पी धरूँ

थाली पे बैठूँ
झूठा न छोड़ूँ
दाने दाने को
पुरष्कृत करूँ

सबसे जुड़ूं
पाँव जमीं पे धरूँ
दिखावे की आँधी से
बचता चलूँ

खाली जब बैठूं
मैं चिंतन करूँ
मानवता मेरी
कैसे उत्कृष्ट करूँ

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