ऋतुएँ आए और जाए
कोई मौसम मुझको न भाए
सावन मेरा मेरे संग है
जो हर पल बरसता ही जाए
झोंका हवा का जो आए
आँसू की धारों को सुखाए
ये नादां हवा क्यूँ न जाने
लकीरें उससे मिट न पाए
ये निशानी तुझसे क्या छिपाएं
तू बोले तो सब कुछ बताएं
सावन की वो भीगी रातें
अब हर रात ही भीग जाए
तेरा चेहरा नज़र से ना जाए
हरदम वो मुझे बहकाए
मेरे मन का ये बचपन तो देखो
तेरे नैनों में ही डूब जाए
मेरा सावन जो भी देख पाए
वो भी उसमे ही भीग जाए
और पूछे अचंभित होकर के
क्या ऐसे कोई सावन मे नहाए
कोई मौसम मुझको न भाए
सावन मेरा मेरे संग है
जो हर पल बरसता ही जाए
झोंका हवा का जो आए
आँसू की धारों को सुखाए
ये नादां हवा क्यूँ न जाने
लकीरें उससे मिट न पाए
ये निशानी तुझसे क्या छिपाएं
तू बोले तो सब कुछ बताएं
सावन की वो भीगी रातें
अब हर रात ही भीग जाए
तेरा चेहरा नज़र से ना जाए
हरदम वो मुझे बहकाए
मेरे मन का ये बचपन तो देखो
तेरे नैनों में ही डूब जाए
मेरा सावन जो भी देख पाए
वो भी उसमे ही भीग जाए
और पूछे अचंभित होकर के
क्या ऐसे कोई सावन मे नहाए
Nice
ReplyDeleteThank-you🙏
DeleteSuperb!!
ReplyDeleteThank-you🙏
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