कहीं तो रुक ही जाऊँगा
ज़िन्दगी जितना कहाँ चल पाउँगा
पग पग संभालता हूँ वैसे तो मगर
ना जाने कौनसे कंकर से टकरा जाऊँगा
ज़िन्दगी जितना....
सबको चुकानी पड़ती है कीमतें
हर एक सफलता की
कीमत गर खुद ज़िन्दगी हो जाए
तो बुलंदियों का क्या कर पाउँगा
ज़िन्दगी जितना...
सफलता की आग में
रिश्तों के महल जले हैं
क्या उसी की राख पे
नये आशियानें फिर से बाँध पाउँगा
ज़िन्दगी जितना...
मन शान्त नहीं होता
जब भीतर में उद्वेग भरा हो
हर क्षण आवेश के आवेग से
क्या कभी मुक्त हो पाउँगा
ज़िन्दगी जितना...
कोल्हू के बैल सा चला जा रहा हूँ
आँखों पे पट्टी और पांवों में चक्कर
क्या कभी उसी तेल को अपने सर पे
बरामदे में बैठ के लगवा पाउँगा
ज़िन्दगी जितना...
कहने को तो, अपनों की गिनती बढ़ रही है
पर हकीकत में उतना अपनापन है कहाँ
झूठे दिखावे में धोखा किस को दे रहा हूँ
क्या कभी इतना सा विचार कर पाउँगा
ज़िन्दगी जितना...
ज़िन्दगी जितना कहाँ चल पाउँगा
पग पग संभालता हूँ वैसे तो मगर
ना जाने कौनसे कंकर से टकरा जाऊँगा
ज़िन्दगी जितना....
सबको चुकानी पड़ती है कीमतें
हर एक सफलता की
कीमत गर खुद ज़िन्दगी हो जाए
तो बुलंदियों का क्या कर पाउँगा
ज़िन्दगी जितना...
सफलता की आग में
रिश्तों के महल जले हैं
क्या उसी की राख पे
नये आशियानें फिर से बाँध पाउँगा
ज़िन्दगी जितना...
मन शान्त नहीं होता
जब भीतर में उद्वेग भरा हो
हर क्षण आवेश के आवेग से
क्या कभी मुक्त हो पाउँगा
ज़िन्दगी जितना...
कोल्हू के बैल सा चला जा रहा हूँ
आँखों पे पट्टी और पांवों में चक्कर
क्या कभी उसी तेल को अपने सर पे
बरामदे में बैठ के लगवा पाउँगा
ज़िन्दगी जितना...
कहने को तो, अपनों की गिनती बढ़ रही है
पर हकीकत में उतना अपनापन है कहाँ
झूठे दिखावे में धोखा किस को दे रहा हूँ
क्या कभी इतना सा विचार कर पाउँगा
ज़िन्दगी जितना...
Awsum!! Bahut hi gehrahi wale shabd.. dil ko chu jaane wale.
ReplyDeleteThank you🙏
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