ना ज़िन्दगी की छाँव में
है मौत के फैलाव में
है मौत के फैलाव में
मुसीबतें पहाड़ सी
है चिंताओं की धार सी
सर्दियों सी धुंध धुंध
धुँए के गुब्बार सी
न कुछ दिखेगा सामने
है ज़िन्दगी बेजान सी
निराशाऐं है खड़ी
आशाएं अंजान सी
लगेगा डर लपेटने
शाखाओं पे बेल सी
रोये रोये जाएगा
तू भूल जाएगा हंसी
लगेगा कुछ नहीं सही
ख़ामोशीयाँ फैली हुयी
डोलती मझधार में
है नैया मेरी जा फँसी
ये ज़िन्दगी है ज़िन्दगी
कभी है गम कभी ख़ुशी
धैर्य गर तू खो गया
मुश्किल बड़ी है वापसी
रख हौसला, न कर हड़बड़ी
कर्मों के फल की है लड़ी
हरी का इम्तेहान है
करेगा पार ही हरी
आस रख तू , है हरी
बजेगी मधुर बांसुरी
-प्रशांत सेठिया
Awesome
ReplyDeleteThank-you🙏
DeleteMast...
ReplyDeleteThank-you🙏
DeleteBahut khub
ReplyDeleteThank-you☺️
DeleteDil Ko chhu si gyi
ReplyDeleteShilpa
ReplyDeleteरख हौसला, न कर हड़बड़ी
कर्मों के फल की है लड़ी this line took my heart ... very nice
Thank you Shilpa 😊
DeletePerfectly suites with current situation.. well written bhai
ReplyDeleteThank you😊🙏
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