मोहन प्यारे

मोहन प्यारे तू सब जाने
खुशियों के आसार बता दे
मोहन प्यारे मन तुझे माने
शांति का आधार बता दे

नन्ही बच्चियाँ क्यूँ मर रही है-२
क्या उनका है कसूर बता दे
मोहन प्यारे

मानव ज्ञानी बहुत हो गया-२
कैसे बढ़े समझ ये बता दे
मोहन प्यारे

सबसे प्यारी रचना तेरी-२
क्यों मानव घातक है बता दे
मोहन प्यारे

कब सब के दिल में बस जाऊँ-२
कब मैं खुद से खुद को हारांऊं
मोहन प्यारे

सागर से नादिया मिलती है-२
कब अपना हो मिलन ये बता दे
मोहन प्यारे

नदिया मीठी, सागर खारा

नदिया मीठी, सागर खारा
अंत तो है, खारा ही खारा
नदिया की तो मंजिल सागर
होना पड़ेगा उसे भी खारा

ठीक वैसे ही समझ मेरे प्यारे
जीवन मीठा, काल है खारा
काल की दस्तक से पहले तू
जीवन करले मीठा सारा

मोह भोग सब लगता मीठा
लेकिन सब जहर सम खारा
संचय उतना मत कर जिससे
अंत हो जाये बिल्कुल खारा

नदिया सम तू बहता चल
जीवन सब को देता चल
गर तू नहीं दे पाया कुछ भी
वैसे भी सब होना है खारा

बैर भाव को तू क्यूँ रखता
क्यूँ करता तू प्रतिस्पर्धा
धारण धैर्य को करके देख
जब चढ़ जाये तेरा पारा

अकड़ अगर तूने करली तो
समझो सबके मन से उतरा
ध्यान तू औरों का भी रख ले
मनभावन होगा तेरा औरा

गर कमाया खुद ही खो देगा
जाने पर तेरे न कोई रोयेगा
जो है थोड़ा देता चल
संचय का न कोई किनारा

कुछ तो ऐसा काम तू करले
जिससे याद करे जग सारा
जीवन मीठा मृत्यु मीठी
तेरे लिए हो ना कुछ भी खारा

ए माँ कैसे भुलाऊँ

ए माँ कैसे भुलाऊँ
हँसती तेरी मुरतिया
मेरे रोम रोम में है
वात्सल्य की वो छाया
ए माँ कैसे भुलाऊँ...

ना होश में रहूँ मैं,
लम्हों को याद करके
उनमें ही मैं खो जाँऊ
जिनमे था तेरा साया
ए माँ कैसे भुलाऊँ...

पिछले जनम का शायद
कोई पुण्य था हमारा
जिससे ही हमने तेरा
आनंदित साथ पाया
ए माँ कैसे भुलाऊँ...

तेरे बिन ये ज़िन्दगानी
क्या होगी कभी ना जानी
तेरी याद इक हंसाए
पल में भिगाए अँखियाँ
ए माँ कैसे भुलाऊँ...

तेरे ऋणी रहेंगे
कर्जों में तूने डाला
माँगी न कौड़ी तूने
निःस्वार्थ प्यार लुटाया
ए माँ कैसे भुलाऊँ...

तेरी एक एक बातें
अब भी हो जैसे ताज़ा
अवसर भले हो कुछ भी
तेरा नाम मन में आया
ए माँ कैसे भुलाऊँ...

हर एक कोना घर का
तेरी याद वो दिलाये
चहक थी तेरे कदम से
सन्नाटा अब है छाया
ए माँ कैसे भुलाऊँ...

तू थी त्याग की वो मूरत
खुद की न कोई चाहत
परिवार खुश रहे बस
इतनी ही थी तेरी दुआ
ए माँ कैसे भुलाऊँ...

ए माँ कैसे भुलाऊँ
हँसती तेरी मुरतिया
मेरे रोम रोम में है
वात्सल्य की वो छाया

जीत

तू क्यूँ नहीं बढ़ पा रहा
चिंता तुझे किस बात की
तू चला चल, रुक नहीं
मिलेगी जल्द ही समृद्धि

औरों से भले ही सीख ले
बजाय उनकी नक़ल के
पहचान अपनी शक्ति को
उत्कृष्ट बन बिन मतलबी

उम्मीद रख और करम कर
कमजोरियों पर कर फतह
हावी न उनको होने दे
गर चाहता है तरक्की

धैर्य रख हिम्मत न खो
रस्ते में मुश्किल आएगी
लड़ना ही है डट के तुझे
नेकी से बढ़ ना कर बदी

जग न बढ़ पायेगा गर
रफ़्तार तेरी रुक गयी
अनगिनत तू से बना
संसार तेरा सुरमयी

तू कुछ समझ ना पायेगा
तेरा वक़्त ज़ल्द ही जाएगा
आदत समझ जो रोके तुझे
निश्चय ही जीत तू पायेगा

मृग तृष्णा

जब भी तुझे
ढूंढे निगाहें
तेरे करीब
खुद को ही पाए

तेरे भरम में
चलता चलूँ में
बदलता फिरूँ में
अक्सर अपनी राहें

जैसे कस्तूरी
हिरण के अंदर ही
नाचे और दौड़े
अंदर ना टटोले

तेरा ही जोगी
ये दिल बन चुका है
समझता नहीं ये
लख समझाए

तेरे साँसों की गर्मी
तेरे छूने की नरमी
ऐसा लगे तू मेरे
पास भरे आहें

तेरा वो आलिंगन
बाँहों की जकड़न
वो माथे पे चुम्बन
तुझे कैसे भुलाये

तेरा ही चेहरा
दिल में बसा है
फैला के खड़ा हूँ
मैं अपनी बाहें

उम्मीद मेरी
ना होगी कभी कम
तू आएगी जल्दी
ये दिल दोहराये

सारे अपने है

कौन तुझको ज़िन्दगी में प्यार करता है
कौन तेरी याद में बेहिसाब रोता है
कौन तुम बिन रात भर इक पल न सोता है
क्यूँ जानना है तुझको जो होना है होता है

कौन तुझको षड़यंत्र में शामिल करता है
ज़िन्दगी को वो खिलौना क्यूँ समझता है
क्यूँ तुझे स्वार्थ से कोई याद करता है
क्यूँ जानना है तुझको जो होना है होता है

दो मुखोटे सामने पीछे क्यों रखता है
क्यूँ कोई तेरी बढ़त से भी भड़कता है
क्यूँ कोई तेरी बात पे संयम को खोता है
क्यूँ जानना है तुझको जो होना है होता है

तू लुटाये जा मोहब्बत सारे अपने है
तू बनाये रखना सबसे सारे अपने है
तू लुटा खुशियाँ जहाँ में सारे अपने है

लफ्जों की चुप्पी

लफ्जों की चुप्पी
मन में हंगामा
कुछ तो है दिल में
जो है न सुनने वाला

मत क्रोध दे
थोड़ा शांत रह
धधकता है शोला
न अभी बुझने वाला

ख्वाब था सुंदर
क्यों नींद टूटी
गर होता पता तो
था मैं कहाँ उठने वाला

वो एक बात है
जो न बदली कभी
मरता था तुझ पे
हूँ ऐसे ही रहने वाला

ना जाने नजर हम पे
किसकी लगी थी
सोचा बहुत, खैर
होता ही है, जो होने वाला

तू ही तो है

तू ही तू है
जिधर देखूं
मेरे दिल में
तू ही तू है

क्या करुं मैं
तुम गई तो
हर जगह पे
फिर भी है तू
हर क्षण में तू
कण कण में तू
मेरा जीवन
तू ही तो है

मेरी काली
रातों में तू
मेरी उजली
किरणों में तू
घाव मेरा
तू ही मरहम
मेरे हर पल की अदा
तू ही तो है

आइना भी तू
चेहरा भी तू
तू उजाला
मेरी छाया
तुझसे हंसी
तुझसे रुन्दन
जीवन की मेरी कश्ती
तू ही तो है

खुशनुमा तू
हर इक मौसम
नज़्म है तू
मेरी कलम
तू ही पहचान
मेरा पतन
रातों में जिससे जागू
तू ही तो है

अश्कों में तू
तू ही मुस्कान
तू ही जीवन
मेरा कफ़न
साँसें मेरी
तू ही धड़कन
मेरे वजह जीने की
तू ही तो है

तू ही जबां
तू ही मनन
तू मेरा तम
तू ही चेतन
मेरी चुप्पी
मेरी खन खन
मेरा सुनहरा पन्ना
तू ही तो है

मेरी ख़ुशी
मेरी घुटन
मेरी जमीं
मेरा गगन
मेरी पूजा
मेरी अजां
मेरे हर पल की मन्नत
तू ही तो है

मेरा विघटन
मेरा संगठन
सार मेरा
मेरा वर्णन
मेरी सब याद
मेरा विस्मरण
सारे मर्जों की दवा
तू ही तो है

मेरा चलना
मेरा रुकना
मेरी उलझन
मेरी सुलझन
मेरा पतझड़
मेरा सावन
मेरी तो सारी ऋतुएं
तू ही तो है

कई दफ़ा

तूझ संग बातें करते करते न जाने कैसे
अपना घर पार कर चुका हूँ कई दफ़ा
दिन भर तुझ में खो के न जाने कैसे
ख़ुद को भुला चुका हूँ कई दफ़ा

प्यारे ढ़ंग से चल रहा था अपना किस्सा
किसी को कानों कान खबर न थी
जब से तू गई है न जाने कैसे
अनजाने में तुझे पुकार चुका हूँ कई दफ़ा

राहत से आहत कोई भला क्यों होने लगा
मुझसे पूछो सन्नाटा दिल में कैसे भरने लगा
ज़िन्दगी चल रही है
न जाने कैसे साँसे चलते हुवे भी
मौत से रूबरू हो चुका हूँ कई दफ़ा

अश्कों का आलम ये हुआ राजा
कि अब तो वो भी मुझसे ख़फ़ा है
तुम्हारी तस्वीरों को देख के रोने वाला अब
न जाने कैसे ठहाके मार के
हँस चुका है कई दफ़ा

कबीर के माला वाले दोहे
अच्छे लगते थे मेरे को भी
मस्ती में मैं भी सुनता था किस्से ऐसे
तेरे जाने के बाद न जाने कैसे
हरी नाम से ज्यादा तुझे लिख चुका हूँ कई दफ़ा

किसी के अल्फ़ाज़ उधार लेके,
सब को हर सवेरे
नित नया सलाम भेजता था
कोई कैसे इतना सब लिख पाता है
ये सब एक मेरे को पहेली लगता था
तेरी जुदाई से न जाने कैसे
मैं ये पहेली सुलझा चुका हूँ कई दफ़ा

आवाजें तो बहुत आई थी मेरे दिल से
कि तुम कैसी हो,
खाना हुआ क्या,
उठ गयी क्या,
गुस्सा है क्या वगैरह वगैरह
जिसे सुन के भी तूने दरकिनार किये होंगे
रास्ते जरूर बदल गये है तेरे और मेरे
मगर दोनों के दिल आज भी ख़ुशामद पूछते होंगे
रिश्तें कहाँ खून के ही निभाए जाते है
ये तुझ से बेहतर कौन जानेगा
वैसे तो तू कुछ नहीं थी मेरी
पर दिल ही दिल में
तुझे अपना हमराही मान चुका था कई दफ़ा

अपनों को धोखा हम दोनों ने ही दिया था
बात बात पे झूठे बहाने बनाने में तो महारत थी
अभी सोचता हूँ कि ये सब क्यों किया
इस चक्कर में खुद को धोका दे चुका हूँ कई दफ़ा

मुसीबतें

ना ज़िन्दगी की छाँव में
है मौत के फैलाव में

मुसीबतें पहाड़ सी
है चिंताओं की धार सी

सर्दियों सी धुंध धुंध
धुँए के गुब्बार सी

न कुछ दिखेगा सामने
है ज़िन्दगी बेजान सी

निराशाऐं है खड़ी
आशाएं अंजान सी

लगेगा डर लपेटने
शाखाओं पे बेल सी

रोये रोये जाएगा
तू भूल जाएगा हंसी

लगेगा कुछ नहीं सही
ख़ामोशीयाँ फैली हुयी

डोलती मझधार में
है नैया मेरी जा फँसी

ये ज़िन्दगी है ज़िन्दगी
कभी है गम कभी ख़ुशी

धैर्य गर तू खो गया
मुश्किल बड़ी है वापसी

रख हौसला, न कर हड़बड़ी
कर्मों के फल की है लड़ी

हरी का इम्तेहान है
करेगा पार ही हरी

आस रख तू , है हरी
बजेगी मधुर बांसुरी

-प्रशांत सेठिया