मेरी ज़िम्मेदारी से वाकिफ़ हूँ

ज़माने भर की आवाज़ सुनता रहूँगा
ताउम्र कर्म करता रहूँगा
मेरी ज़िम्मेदारी से वाकिफ़ हूँ
मैं दिन रात मेहनत करता रहूँगा

कौन कैसे पेश आते है मुझसे
इनका हिसाब कैसे रखूँ
मेरा काम नहीं ये जनाब
कि किसने क्या कहा उसका जवाब देता रहुँगा
मेरी ज़िम्मेदारी...

मेरे जवाब से भी गर वह शान्त होये
तो समझ भी आये
बिन मतलब की गुफ्तगू में
अपना भेजा क्यों दुखाउंगा
मेरी ज़िम्मेदारी...

हिसाब तो इन सब का इधर ही होगा
में क्यूँ इसमें भागीदार बन जाऊँ
राहत है शांति से जीने में
अशांति मन में क्यूँ फैलाऊंगा
मेरी ज़िम्मेदारी...

अच्छा बुरा फायदा नुकसान
किसी न किसी को तो होयेगा ही
मैं मेरे हिस्से की कमाई से खुश हूँ
यही कोशिश करता रहूँगा
मेरी ज़िम्मेदारी...

गीता का सार भी तो यही है
कर्मों का जाल बुनता चलूँ
रास्ते तो निश्चित ही कठिन होंगें
अपने को मुकम्मल बनाता चलूँगा
मेरी ज़िम्मेदारी...

No comments:

Post a Comment