मैं क्षुब्ध था

मैं क्षुब्ध था, आहत भी,
तेरी कसम ना राहत थी,
हंसी के लिए तेरे मैं थम गया
ऐसा नहीं मुझमें जुनूँ कम था।

यादों को तेरी सारी मिटाके
सोचा था तुझको भुला पाएंगे
कम्बख्त दिल माना नहीं
और कर ना पाया मुझसे वफ़ा
मैं क्षुब्ध था...

तेरी हंसी तेरी वो मस्तियाँ
ज़िन्दगी वही थी मेरे लिए
अब तो मैं साँसें ले रहा हूँ
जीना जैसे मैं भूला दिया
मैं क्षुब्ध था...

जिम्मेदारियों से मैं बंधा था
इसके लिए अब तक जी रहा हूँ
गर मैं अकेला होता तो
तुम भी कब की हो चुकी होती तनहा
मैं क्षुब्ध था....

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