जी तो ख़ुद लेंगे


जी तो ख़ुद लेंगे
जीना क्या सिर्फ सांस लेने का नाम तो नहीं

ख़ुद से लड़ के, सिसकते,
सर्द रातों में ठिठुरते,
बारिश की रातों में भीगते,
सोचा तो कई बार पर ना कर सके,
छोड़ू कैसे तुम्हे बगैर दुनियां को छोड़े,
कोई इतना सा बता दे बस
जी तो खुद लेंगे

आया तो बहुत बार था तुमसे मिलने
तेरे नखरों से ही समझ गया था के
तू सुधर गई है वरना
ऐसा कभी हुआ था कि
मैं बुलाऊँ और तुम ना आओ
बुलाते ही तुम जाओ मेरे पास कैसे
कोई इतना सा बता दे बस
जी तो खुद लेंगे

तेरे पास बैठे हमेशा मैं चुप ही रहता था
क्योंकि तुझ से नज़र हटे तो बात हों,
फिर भी जाने दिल में अज़ीब सा शोर रहता था
अब तो दिल कब का ख़ामोश हो चूका है
मस्तियों का आखिरी पन्ना कब का पलट चूका है
क्या क़सूर था मेरा मैं जवाब अब भी तलाशता हूँ
कोई इतना सा बता दे क्यूँ
जी तो खुद लेंगे

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