खुला फीता

दफ्तर के लिए घर से निकला ही था
और जूतों पे फीता कसना भूल गया
मैं तो सिर्फ इतना ही भुला था इस शहर में
खैर, सड़क के किनारे अचानक से देखा तो लगा
जैसे दोनों फीते आपस में इशारों में बातें कर रहे हो
या जैसे भोला बालक हाथ हिलाते चला जा रहा कहीं
बेफिक्र में जैसे अपनी ही मस्ती में कहीं
कभी दाएं तो कभी बाएं देखता हुआ
जूतों से बाहर जाने की कोशिश तो न थी कहीं फितों की
गर ऐसा था तो कुछ गजब ही होने वाला था
जूतों को धारण किये मैं गिरने वाला था
इसका दोष गर फीतों को दे तो बेवकूफी होगी
फ़ीते कभी भी खुद से नहीं बंधने वाले
खुला छोड़ना अच्छी बात है बांधना नहीं
पर खुला छोड़ने पे गर कोई गिर जाए तो
नसीहत यही सही होगी कि कसना भी जरुरी है
मेरे पास दूसरा पहलु भी था इसका
की गर में इनको न कसता
तो यह मेरी ज़िम्मेदारी है
की संभल के चलूँ

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